डा. श्याम
सुन्दर दीप्ति
रेणु अपने पति राजेश के साथ माँ से मिलने जा रही थी।
रेणु की शादी को लगभग एक महीना हो गया था। उसने शादी से पहले ही राजेश को एक
बात स्पष्ट कर दी थी कि शादी के बाद वह अपनी माँ को अकेली नहीं छोडेगी। वह ओर माँ,
दो ही सदस्य तो थे घर में। शादी के बाद उसकी माँ घर में बिलकुल अकेली रह जाएगी।
राजेश ने कहा था, “मैं समझता
हूँ तुम्हारी भावनाओं को, यह भी कोई कहने वाली बात है। यह तो हमारा फर्ज बनता है।”
वे जब घर
पहुँचे, रेणु की माँ घर के दरवाजे पर खड़ी चावला साहब को ‘बाय-बाय’ कर रही थी।
उन्हें देख चावला साहब कार स्टार्ट करते-करते रुक गए।
राजेश व
रेणु से मिल तथा उनका कुशल-क्षेम जान वे चले गए।
चावला
साहब रेणु के पिता के करीबी मित्र रहे हैं। रेणु के पिता की मृत्यु के पश्चात उनका
संपर्क इस परिवार से बना रहा। रेणु के विवाह में राजेश को भी चावला साहब की सरगर्म
भूमिका का एहसास हुआ था।
जब रेणु
की माँ उनके लिए पानी लेने गई तो राजेश ने कहा, “रेणु, चावला अंकल को ‘बाय-बाय’ करते वक्त मम्मी
की आँखें देखी थी?”
“क्या था आँखों में?” रेणु एकाएक घबरा-सी गई।
“खुशी ओर वियोग की मिली-जुली झलक थी।” राजेश का जवाब था।
रेणु कुछ
नहीं बोली। वह विचारमग्न हो गई कि राजेश की इस बात का क्या अर्थ है।
माँ से
मिलने के पश्चात वे लौट आए थे, पर रेणु के मस्तिष्क में राजेश की कही बात घूम रही
थी। वह सोचती रही– राजेश ने मम्मी के बारे में ऐसा क्यों कहा?
रात को
बिस्तर पर लेटने के पश्चात रेणु ने राजेश से पूछा, “क्या कह रहे थे तुम सुबह? तुमने मम्मी की आँखों
में क्या देखा?”
“ओह! कुछ नहीं! तुमने कौन सा पहले नहीं देखा
होगा…मैं तो कहना चाहता था…तुम यूँ ही मम्मी की चिन्ता करती हो, उनकी तरफ से निश्चिंत
हो जाओ…वे वहाँ खुश हैं।” राजेश ने
रेणु के नज़दीक होते हुए कहा।
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