Monday 24 June 2013

छत्र-छाया



मक्खन सिंह चौहान

शिकायत का विषय पढ़ते ही फूड-सप्लाई अधिकारी शीत बरसाते हुआ बोला, प्लीज बैठो! फौजी साहब, मैं आपकी भावनाओं की कद्र करता हूँ। मुझे बताओ कि गिरधारी लाल डीपू-होल्डर के प्रति आपके क्या शिकवे हैं?
सर, मैं गिरधारी सेठ से कई सालों से किरासिन लेता आ रहा हूँ। पर पिछले दो महीने से वह किरासिन देने के लिए टालमटोल कर रहा है। कभी कहता है, तेल कम मिला है; कभी कहता है, ड्रम में से तेल लीक कर गया। सर, इसी लिए आपके पास हाज़िर हुआ हूँ। अपाहिज फौजी हरबंस सिंह ने अपनी कटी लात का भार लाठी पर डालते हुए दुखी लहज़े में कहा।
घंटी बजने पर चपरासी अंदर आया। अधिकारी ने आदेश दिया, इंस्पैक्टर महिता को बुलाओ।
हुकुम की तामील हुई। इंस्पैक्टर महिता अपने अफसर के कमरे में हाज़िर हुआ।
तुम्हारे एरिये में गिरधारी लाल डीपू वाले ने क्या अँधेरगर्दी मचा रखी है। पब्लिक को किरासिन जारी नहीं कर रहा। क्या उसके कोटे में कुछ कटौती की गई है?
नहीं सर! उसका सारा कोटा हर महीने सही जा रहा है। बाकी में उसका इश्यू रजिस्टर चैक कर लेता हूँ।
फौजी साहब की शिकायत का उचित हल करो, वर्ना मुझे सख्त कारवाई के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
फौजी जब अपने घर पहुँचा तो किरासिन से भरा केन उसके घर पहुँचा हुआ था।
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Tuesday 18 June 2013

वेदना



कर्मजीत नडाला (डॉ.)

मंडी में गेहूँ की ढ़ेरियाँ दूर-दूर तक लगी थीं। पसीने से लथपथ प्रवासी मज़दूर उनपर काम कर रहे थे।
उसी समय एक ऊँची चीख सुनाई दी और मंडी में सन्नाटा छा गया। गेहूँ साफ करने वाली मशीन से एक मज़दूर को बिजली का करंट लग गया था।
देखो सेठ, रामू करंट से मर गया…हम कितने दिनों से कह रहे थे कि बिजली की तारों को ठीक करवा दो…पर आपने हमारी एक न सुनी। जल्दी से लाश की ओर आ रहे सेठ को एक मज़दूर ने कहा।
ओह! वह मर गया…बहुत बुरा हुआ…।सेठ एकदम घबरा गया।
कहीं ये सारे ‘भइये’(प्रवासी मज़दूर) कोई हंगामा ही न खड़ा कर दें। पुलिस-केस न बन जाए। साथ में चालीस-पचास हज़ार रुपये देने पड़ेंगे। सेठ रुआँसी-सी सूरत बना लाश के पैरों के पास बैठ बोला, “…भई सुनो…रामू से बहुत बुरा हुआ…तुम रोवो न, हौंसला करो…यह तो भगवान का जो लिखा था, वह हो गया। होनी को कौन टाल सकता है…किसी के बस की बात नहीं…समझदार बनो। इस मेहनती आदमी की लाश को यूँ धूल-मिट्टी में न रुलने दो,। चलो इसे उठाओ, जल्दी से इसका दाह-संस्कार कर दें।
थोड़ी देर में ही एक जिंदा व्यक्ति लाश बना और फिर राख में बदल गया।
वापस आकर सेठ अपने ठंडे केबिन में घुस गया और सभी मज़दूर बोरियों के पास इकट्ठे होकर बैठ गए।
कुछ देर बाद रोने की आवाज़ें तेज़ हुई तो सेठ केबिन से बाहर आ गया।
ओए! तुमने ये क्या रोना-धोना मचा रखा है, काम क्यों नहीं करते?
दिल नहीं मान रहा।
जिस बाप को रो रहे हो, इस तरह रोने से क्या वह वापस आ जाएगा? चलो काम करो। ऊपर आसमान में बादल छा रहे हैं, मैं गेहूँ के मालिकों को क्या जवाब दूँगा…सालो, मेरा लाखों का नुकसान करवाना है। कान खोल कर सुन लो…अगर मेरा नुकसान हुआ तो  तुम्हें एक पैसा नहीं मिलेगा…।गुस्से में बोलता हुआ सेठ चला गया।
और ‘भइये’ एक-दूसरे के मुँह की ओर देखते बिखरने लगे। सुबकते और धूल-सने हाथों से आँसू पोंछते, काम पर जुट गए। उन का रुदन मशीनों के शोर में गुम हो गया।
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Sunday 9 June 2013

पत्थर



रविंदर रूपाल

अरी कैलो! बड़ी प्यास लगी है, एक कदम भी नहीं चला जा रहा।जैलो ने कहा।
कैलो और जैलो अपने सिर पर गठरियाँ उठाए गाँव की ओर जा रही थीं।
सरपंच की कोठी में ही पीएंगे पानी, वहाँ तक मन करड़ा कर चलती रह।यह कह कैलो की चाल कुछ तेज हो गई।
जब वे सरपंच की कोठी के करीब पहुँची तो देखा, वहाँ एक टैम्पू से मार्बल उतर रहा था। वहाँ से गाँव अभी भी आधा मील दूर था।
जब जैलो की निगाह में टैम्पू पड़ा, तो उसने पास खड़े सरपंच के नौकर से पूछा, बीरू, टौम्पू में से क्या उतर रहा है?
टैम्पू में से तो चाची पत्थर उतर रहा है, सरपंच साब के आँगन में लगाने के लिए।बीरू का जवाब था।
पत्थर’ शब्द जैसे जैलो के सिर पर लगा।
आजा कैलो, पानी तो अब अपने घर जाकर ही पीएंगे।
बहन! क्या बात हो गई?पीछे आ रही कैलो ने पूछा, अभी तो बड़ी प्यास लगी थी।
अरी, यह जो टैम्पू से पत्थर उतर रहा है न, उसने सारी प्यास बुझा दी।
कैसे?
पहले तो मैं पाँच-सात दिन में के सरपंच का आँगन लीप जाती थी। इस पत्थर ने तो गरीबनी का दस-बीस रुपया भी मार देना है।
इतना कह वह और तेज हो गई, जैसे पत्थर उसका पीछा कर रहा हो।
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Sunday 2 June 2013

पीढ़ी-अंतर



डॉ. बलदेव सिंह खहिरा

जैसे ही शादी की रस्में पूरी हुईं, रामेश्वर प्रसाद ने भगवान को धन्यवाद दिया। बेटे की शादी आगे नहीं डाली जा सकती थी और रामेश्वर प्रसाद की माँ सख्त बीमार थी। पर सब ठीक-ठाक निपट गया। कल स्वागत-समारोह भी हो गया था।
आज सुबह-सुबह घर में भाग-दौड़ चल रही थी। बेटा अखिलेश और बहू आज घूमने-फिरने के ले मसूरी जाने वाले थे।
रामेश्वर प्रसाद चाय ले कर माँ के कमरे में पहुँचे तो सन्न रह गए। माँ ठंडी हुई पड़ी थी। वह बदहवास से खड़े थे कि अखिलेश आ गया।
बेटे…तुम्हारी दादी…रामेश्वर प्रसाद का गला भर आया, तुम अगले हफ्ते चले जाना, माँ की रस्में पूरी होने तक रुक जाओ।
अखिलेश ने झट से दरवाजा बंद कर दिया।
पापा…अभी किसी को नहीं पता कि दादी ने प्राण त्याग दिए हैं। टैक्सी आ गई है, आप समझते हो न कि हमारा जाना कितना जरूरी है। क्या आप चाहते हैं कि शादी करवा कर मैं मातम में बैठा रहूँ?
पर बेटे…
बस पापा, प्लीज आधा घंटा दादी की मौत छिपा लें, कह देना कि वह सो रही हैं।
अगले ही पल अखिलेश कमरे से बाहर हो गया।
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