आर.एस आज़ाद
वह दृश्य भी देखने वाला था। बाँझ पति-पत्नी डॉक्टर की उसके क्लिनिक पर मिन्नतें कर रहे थे, “डाक्टर साहब, इस बच्चे को हम अपनी जान से भी बढ़कर पालेंगे।”
उनकी मिन्नतों से डॉक्टर का दिल पसीज गया।
डॉक्टर ने उन्हें बाज़ार से बच्चे के लिए कपड़े लाने को कहा। जब वे कुछ देर बाद बाज़ार से लौटे तो डॉक्टर हैरान रह गया। वे कितने ही रेडीमेड सूट, तौलिये, जुराबें, कम्बल, पाउडर व साबुन ले आए थे।
डॉक्टर के कहने पर नर्स ने बच्चे को उनकी गोद में डाल दिया। बस फिर क्या था, वे खुशी से पागल हो उठे। कितनी ही देर तक वे डॉक्टर और नर्स को धन्यवाद देते रहे।
डॉक्टर ने उन्हें जाने की इज़ाजत दे दी। डॉक्टर अपनी आदत अनुसार उन्हें क्लिनिक की नीचे वाली सीढ़ी तक जाते हुए देखने लगा। वह अपने दिल में कितनी खुशी महसूस कर रहा था, यह तो ऊपरवाला ही जानता था।
वे बच्चा लेकर क्लिनिक के बाहर सड़क पर पहुँचे ही थे कि पीछे से मोटर-साइकिल ने टक्कर मार दी। बच्चा औरत के हाथों से छूटकर एक तरफ जा गिरा।
उसने एक जोरदार चीख मारी, “हाय मेरा बच्चा!”
चीख के साथ ही उसने हमेशा के लिए अपनी आँखें बंद कर ली।
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