Tuesday 26 January 2010

बंधन


सतिपाल खुल्लर

आज सगाई का दिन है। होने वाले दोनों समधी घनिष्ठ मित्र हैं। उनकी मित्रता को सारा शहर जानता है।

मित्रता हो तो इन जैसी, नहीं तो बिन मित्र ही भले।कोई कहता।

मित्र तो लगते ही नहीं, यूँ लगता है जैसे सगे भाई हों, कोई अन्य कहता, वे सदा गले लग कर मिलते हैं।

पिछले दिनों जब ये मित्र मिले तो एक ने कहा, यार, क्यों न हम अपनी मित्रता को रिश्ते में बदल लें।

तुमने तो मेरे दिल की बात कह दी।दूसरे ने खुश होकर कहा था। और फिर रिश्ते की बात पक्की हो गई।

आज उन्होंने आना है और आप अभी तक उठे ही नहीं। बिस्तर पर लेटे पति से पहले मित्र की पत्नी ने कहा।

फिर क्या हुआ, मेरा मित्र ही तो है!वह आँखों को मसलता हुआ उठ कर बैठ गया।

पहले बात और थी, अब हम लड़की वाले हैं।पत्नी ने सिर पर लिया दुपट्टा ठीक करते हुए कहा।

ठीक है, मैं तैयार होता हूँ, तुम बेटे को बाज़ार से सामान लाने के लिए भेजो।

यह क्या पहन लिया, कोई ढंग का सूट पहनो।उधर दूसरे की पत्नी ने अपनी रेश्मी साड़ी का पल्ला लहराते हुए पति से कहा।

वे कौनसा हमें भूले हैं, सब जानते हैं, फिर सूट का क्या है।

अब पहले वाली बात नहीं रही। हम लड़के वाले हैं।

ठीक है, ठीक है।वह मूँछों को उमेठता हुआ बोला।

शगुन-व्यवहार की रस्मों के पश्चात विदा होते वक्त दोनों मित्र गले मिले। दोनों को लगा कि उनकी मिलनी(जफ्फी) में पहले जैसी गर्मजोशी नहीं रही।

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Monday 18 January 2010

स्टार



केसरा राम


जैसा कि किस्से सुने थे, नये पुलिस कप्तान ने आते ही आदेश जारी कर दिए— ‘सभी गुंडे-बदमाश चौबीस घंटे में शहर छोड़ जाएं। यहाँ कोई भी गैर-कानूनी काम नहीं करने दिया जायेगा। बाजार में कोई भी खुलेआम शराब नहीं पियेगा।’
खबर सारे शहर में जंगल की आग की तरह फैल गई। शहरी थाने में मुंशी ने अपने तौर पर लगभग सभी बदमाशों को फोन द्वारा सावधान कर दिया। तीसरे दिन एस.पी. ने फोन कर इस बारे में पता किया। कई फोन तो ‘नो रिप्लाई’ हो गए। कुछ पर बच्चों ने बताया, “पापा कुछ दिनों के लिए दिल्ली चले गए हैं।”
लोगों की जेबें कटने की घटनाएं भी कम हो गईं।
एस.पी. लुंगी बनियान पहन कर बाजार में निकला। शराब के ठेके से एक पौआ लिया और ठेकेदार से गिलास माँगा। ठेकेदार ने ‘न’ में सिर हिला दिया। वह ठेकेदार के सामने शराबियों की तरह रिरियाया, “जनाब, दे भी दो, पौआ ही तो है… क्या घर लेकर जाऊँगा…यहीं पीकर वापस कर दूँगा… नहीं तो गिलास के भी पैसे ले लो…।”
नहीं भई, आजकल गिलास देना बंद है। घर जाकर पीओ…।”
उसने पूछा, “आखिर अब ऐसा क्या हो गया, पहले तो सब चलता था?”
तब ठेकेदार ने भेद खोला, “पहले तो सब चलता था, लेकिन अब जो एस.पी. आया है न, वह बडा़ हरामजादा है, कुछ नहीं चलने देता।”
एस.पी को लगा जैसे किसी ने उसके कंधे पर एक स्टार और लगा दिया हो।
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Sunday 10 January 2010

निर्माता


इकबाल दीप


और जनाब, आपकी तरफ हालात कैसे हैं?प्रिंसिपल शर्मा ने शहर के मध्य में स्थित स्कूल के प्राचार्य को उत्सुकता से फोन पर पूछा। प्रिंसिपल शर्मा का स्कूल यद्यपि शहर से बाहर है, परंतु समाचार तो हवा के कंधों पर सवार होकर पहुँच ही जाते हैं। बसों की तोड़फोड़, दुकानें बंद, स्कूल-कालेज बंद।

हालात आपसे छुपे हैं क्या शर्मा साहब!… कालेज के लड़के ‘मंडल कमिशन हाए-हाए’ करते हुए आते दिखाई दिए तो अन्य स्कूलों की तरह हमें भी छुट्टी करनी पड़ी।प्राचार्य आर.पी. सिंह निश्चिंत हो बता रहे थे, कौन तुड़वाए शीशे, फर्नीचर!

सिंह साहब, कालेज के लड़कों को हमारे स्कूल का रास्ता भी बता दो।प्रिंसिपल शर्मा ने ‘ही-ही’ करते हुए विनती की।

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Sunday 3 January 2010

बोहनी



रणजीत कोमल

गर्मी पूरे जोरों पर थी। गाँव को जाती सड़क पर सिर्फ उसी की साइकिलों की मरम्मत की दुकान थी। परछाइयाँ ढलने पर थीं, पर अभी बोहनी ही नहीं की थी। उबासियां लेता वह ग्राहक का इंतजार कर रहा था। कभी वह बक्से में पड़े सामान की तरफ देखता और कभी सड़क की तरफ। उसे ग्राहक के आने की कोई आशा नज़र नहीं थी आ रही। उसे बार-बार बच्चों का ध्यान आ रहा था, जिन्हें दिहाड़ी कमा कर ही रात को खिलाना था।
अचानक ही एक बुजुर्ग रिक्शेवाला फूली सांस उसके पास आया।
“इसे देखना, यार! इसकी बस चलाते ही हवा निकल गई…।” पसीना पोंछते बुजुर्ग ने पिछले टायर की तरह इशारा करते हुए कहा।
टायर खोलने में दुकानदार ने एक मिनट भी नहीं लगाया। उसने ट्यूब चैक करनी शुरू की। एक साथ तीन पंक्चर देखकर दुकानदार के चेहरे पर मुस्कान आ गई।
तीन पंक्चर देखकर बुजुर्ग का चेहरा मुरझा गया। आज तो बोहनी ही नहीं की कैसे चलेगा।
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