Monday 25 June 2012

चिंता


रशीद अब्बास

कार में बैठी डॉक्टर रितिका शर्मा बहुत चिंतित थी। वह बार-बार ड्राइवर को कार की गति बढ़ाने के लिए कह रही थी। दो घंटे पहले जब वह सिविल अस्पताल में अपनी ड्यूटी पर थी तो उसे अपनी पुरानी मित्र के क्लिनिक से फोन आया था। एक गर्भवती औरत का केस था। काफी देर से ‘लेबर-पेन’ होने के बावजूद बच्चे का जन्म नहीं हो रहा था। उसने फोन पर ही आपरेशन का सामान तैयार रखने को कह दिया था। दो-तीन मरीजों को देख, अन्य को अगले दिन आने की कह वह अस्पताल से निकलने ही वाली थी। तभी नए आए एस.एम.ओ. साहिब ने कुछ अति आवश्यक मसलों पर विचार हेतु उसे बुला लिया था।
डॉक्टरी पेशे के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते एस.एम.ओ. से डेढ घंटे के विचार-विमर्श के बाद जल्दी से कार में बैठ वह अपनी मित्र के क्लिनिक की ओर दौड़ पड़ी। रास्ते में वह तरह-तरह की सोचों में खोई रही।
क्लिनिक पर पहुँचते ही डॉ. रितिका ने रिसेप्शन-काउँटर पर बैठी लड़की से पूछा, आपरेशन की तैयारी हो गई?
लड़की ने जानी-पहचानी डॉ. रितिका को कहा, मैम, तैयारी तो हमने कर ली थी, पर आपरेशन की ज़रूरत ही नहीं पड़ी…नार्मल डिलिवरी हो गई…परिवार वाले तो उसे वापस भी ले गए…आपका मोबाइल बंद था, इसलिए आपको बता नहीं सके…।
चलो छोडो… बाहर से डॉक्टर बुलाने के चार्जिज तो मरीज के परिवार से क्लेम किए ही होंगे…मेरे पैसे भिजवा देना…मैं अस्पताल जाकर अपनी छुट्टी कैंसिल करवा लेती हूँ। इतना कह डॉ. रितिका उलटे पाँव कार में जा बैठी। अब उसके चेहरे पर चिंता के कोई लक्षण नहीं थे।
                       -0-

Tuesday 19 June 2012

स्टेट्स


                      
डॉ. बलदेव सिंह खहिरा

रिंपल अपने छोटे भाई की शादी में अपने गाँव आई हुई थी। दुख-सुख करते माँ को पता ही न चला कि घर के काम-काज तथा नौकरी के कारण लड़की परेशान है। वापसी वाले दिन माँ की आवाज सुन रिंपल व उसका पति बाहर आ गए।
रिंपी! यह अपने घुद्दू सीरी की छोटी बेटी है। इसी साल पाँचवीं जमात पास की है।
अच्छा!रिंपी फुलकारी वाला दुपट्टा तह करते हुए बोली।
माँ-बाप ने इसे आगे तो पढ़ाना नहीं, शायद शादी के बारे में विचारने लगें…।
हाँ, यही कुछ होता है इनके।
मैंने मुश्किल से इसकी माँ को मनाया है, तू दो-चार साल इसे अपने पास रख ले, तेरे साथ काम करवा देगी।
लड़की की आँखें किसी उम्मीद से चमक उठीं।
पर माँ! इसका रंग तो देख कितना काला है…सब लोग क्या कहेंगे!वह दबी आवाज में बोली।
रिंपल का पति अपने आप को न रोक सका, यह जो शादी में दो दिन खाते-पीते रहे हैं, इनके हाथों का तो खाते रहे हैं, इसे क्या हुआ है?…चंगी-भली है…तंदरुस्त है।
रिंपल बुरा-सा मुँह बनाते हुए बोली, शादी के अवसर पर सबके साथ एक-आध दिन चल गया…वहाँ शहर में…किट्टी-पार्टी में तो मेरी सहेलियों ने इसके हाथ से पानी भी नहीं पीना…आखिर मेरे स्टेट्स का सवाल है।
                         -0-

Monday 11 June 2012

रैडीमेड


                           
अनवंत कौर

विवाह के पाँच साल बाद हुए पहले बच्चे का जन्मदिन था। दोनों उसे धूमधाम से मनाना चाहते थे। पार्टी के लिए सब-कुछ एक महीना पहले ही बुक करवा दिया गया। उन दोनों की हार्दिक इच्छा थी कि उस वाहेगुरू का धन्यवाद भी किया जाए, जिसने यह अमूल्य सौगात दी है।
कोलकाता जैसी जगह। सिर्फ दो कमरे। घर में अतिथियों की भरमार। अखंड-पाठ करवा पाना कठिन होगा। घर में बाबा जी की बीड़ थी। गैलरी में बने एक छोटे कमरे में रोज ‘प्रकाश’ किया जाता था। उन्होंने विचार कर निर्णय किया कि गुरुद्वारे के भाई जी से सहज-पाठ करवा लिया जाए। उनकी इच्छा थी, पाठ घर पर ही होना चाहिए।
शाम को गुरुद्वारे जाकर भाई जी से विनती की गई।
भाई जी बोले, बीबी, महँगाई बहुत है। घर जाकर पाठ करने का ‘मौख़’ ज्यादा होगा।
कोई बात नहीं, जो भेंट बनती है, दी जाएगी।
बीबी, पंद्रह सौ पाठ के। ग्रंथी साहिब की चाय-पानी से सेवा। दोनों समय वह प्रशादा(भोजन) भी छकेंगे।
ठीक है जी।
भोग के समय एक जोड़ा कपड़ों का भी बनवा देना। हाँ सच, जोड़े के साथ पगड़ी ज़रूर हो। पगड़ी ही तो सिक्खी की शान है।
जो हुकुम।
आपको पता ही होगा, कपड़ों के साथ कछहरा-परना भी देना है।
जी।कुछ न जानते हुए भी उन्होंने हामी भर दी।
पहले दिन भाई जी ने दो घंटों में सौ अंक पाठ किया। पाठ के बाद दूध व बादामों की फ़रमाइश हुई। दूसरे दिन तीन घंटों में दो सौ अंक और तीसरे दिन तीन घंटों में तीन सौ अंक हो गए। भाई जी की स्पीड बढ़ती ही गई। अड़तालीस घंटे अखंड चलने वाला पाठ, सहज रूप में मात्र छब्बीस घंटों में समाप्त हो गया।
एतराज करने पर भाई जी बोले, मैं प्रतिदिन नोट करके ले जाता हूँ और गुरुद्वारे में आपका पाठ ही करता रहता हूँ।
अब शोर मचाने से क्या फायदा?पति ने समझाया।
इस महँगाई में रब्ब भी महँगा हो गया है। यहाँ हर चीज महँगी जरूर है, पर हर वक्त तैयार-बर-तैयार मिलती है। देखो आपको पाठ भी किया-कराया मिल रहा है।
जो चीजें रैडीमेड खरीदी जाएँ वे महंगी तो होती ही हैं।
                  -0-