Saturday 6 December 2014

भीतर का दुःख



सतिपाल खुल्लर

उसका दोस्त गुजर गया था। वैसे तो उसने ज़िंदगी में कइयों से दोस्ती की थी, पर अधिकतर से वह दोस्ती का निर्वाह नहीं कर पाया था। मुँह पर सच्ची बात कह देने की आदत ने उसे दोस्तों से दूर कर दिया था। उससे तो कई रिश्तेदार भी मुँह मोड़ गए थे। एक यही दोस्त रह गया था। आज इसकी मौत की खबर सुन कर तो उसके पाँवों के नीचे से जैसे जमीन ही खिसक गई थी।
वह बहुत ही भरे मन से पत्नी सहित दोस्त के घर पहुँचा था। पत्नी औरतों में बैठी मृतक दोस्त की पत्नी के गले लग कर रो रही थी। वह मर्दों में जा बैठा था। वहाँ दोस्त के ताऊ-चाचे, उनके बेटे व बाहर से आए लोग बैठे थे। वह सिर झुकाए बैठा आँसू बहाता रहा, किसके गले लगकर रोता? वहाँ बैठे लोगों की बातें सुन-सुनकर वह हैरान होता रहा। सब कारोबार की बातें कर रहे थे।
पिछले साल की बात है, इस दोस्त के पिता जी का देहांत हो गया था। तब वह दोस्त के गले लग कर बहुत देर तक रोया था। वहाँ बैठे लोगों खुसुर-फुसुर शुरू हो गई थी। यह कौन है? इसे हमसे ज्यादा दुख है क्या! किसी ने अपना दुख दिखाने के लिए बहुत ऊँची आवाज भी  निकाली थी। दोस्त की माँ तो बहुत पहले ही मर चुकी थी।
दाह-संस्कार के पश्चात वह पत्नी के साथ घर लौट आया। मन भरा हुआ था। शाम को पत्नी जब भोजन के लिए पूछने आई तो मृतक दोस्त की बातें छिड़ गईं। मन को फोड़ा फिस पड़ा। उसने पत्नी के गले लग कर ऊँची चीख मारी, हाय दोस्त! तू मुझे अकेला छोड़ गया…!
पत्नी भी सिसकने लगी। कितनी ही देर तक वे एक-दूसरे के गले लग कर रोते रहे।
                         -0-

Sunday 9 November 2014

नई सुबह



राकेश कुमार बिल्ला

     


शहर के चैराहे में एक तरफ पानी की छबील के लिए हौद लगाई गई। शहर की अमन कमेटी ने बिगड़ते माहौल को ध्यान में रखते हुए, यह फैसला किया कि इस छबील पर किसी भी एक धर्म का चिह्न या नारा नहीं लिखा जाएगा।
      इस पर चार नल लगा दिए गए और ऊपर हिन्दू-मुस्लिम, सिक्ख व ईसाई धर्म से सम्बन्धित गुरुओं-पीरों की तस्वीरें लगा दी गईं। अमन कमेटी ने, साम्प्रदायिक सद्भावना के लिए इसका नाम सरब-सांझी छबील रख दिया। लोग आते और पानी पीकर चले जाते।
      एक दिन कड़ाके की धूप में इस छबील पर काफी लोग थे। एक नल पर चार व्यक्ति लाइन लगा कर खड़े थे और बाकी तीनो नल खाली थे। उन्हें एक ही नल पर लाइन में खड़े देख एक राहगीर ने कहा, ‘‘आप धूप में लाइन लगाकर क्यों सड़ रहे हैं, दूसरी ओर सब नल खाली हैं।’’
      यह सुनकर लाइन में खड़े व्यक्तियों ने माथे पर सिलवटें डालकर उसकी तरफ देखा और कहा, ‘‘हमारे धर्म का तो यही एक नल है। बाकी तो दूसरे धर्मवालों के हैं।’’
      यही हाल दूसरे नलों का भी था। सभी ने अपने धर्म के नल बांट लिए जबकि पीछे से पानी एक ही हौद में से आ रहा था।
      अब अमन कमेटी वालों को लोगों के इस व्यवहार पर चिन्ता हुई। पर एक दिन एक बच्चे को ये रंगदार तस्वीरें बहुत अच्छी लगीं। उसने चोरी-चोरी चारों तस्वीरें उतार लीं।
      अब नई सुबह जब छबील पर कोई भी धार्मिक चिह्न वाली तस्वीर नहीं थी, लोग अपनी धुन में जिस भी नल पर जगह मिलती, पानी पीकर आसीस देते चले जा रहे थे।
                                                              -0-



Monday 3 November 2014

पहला कदम



हरभजन सिंह खेमकरनी

धूम-धाम से हुई शादी के बाद तीन माह कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला। पति जसविंदर को वापस कैनेडा जाने के लिए तैयारी करते देख सिमरनजोत का मन खिल उठा कि बस अब कुछ ही दिनों में कैनेडा की धरती उसके पाँव तले होगी। लेकिन परिवार की ओर से उसे तैयारी करने के लिए कोई संकेत नहीं मिला था। शादी से पहले तय तो यही हुआ था के वे दोनों कैनेडा एक साथ जायेंगे। परंतु कैनेडा जाने के लिए आवश्यक कागज-पत्रों के बारे में उसे तो कुछ नहीं बताया जा रहा। उसे लगा, कहीं जाने का समय नजदीक आने पर उसे कागजों के न आने के बहाने का सामना न करना पड़े। शंका निवृत्ति हेतु उसने पति से बात करना ठीक समझा।
लगता है आप कैनेडा जाने की तैयारी कर रहे हो, और मैं?”
इस बार तो तेरा साथ जाना मुश्किल है, कागज़ पूरे नहीं हो रहे।
कागजों का क्या है, आजकल तो आन-लाइन सारा काम हो जाता है। टिकट के पैसे भी  डैडी ने पहले ही दे दे दिए हैं।
“पैसे देकर उन्होने मुझ पर कोई एहसान नहीं किया। लड़कियों को कैनेडा भेजने के लिए लोग लाखों रुपये देनें को तैयार बैठे हैं। हमने तो सिर्फ किराया ही माँगा।”
“तब यह बात भी तय हुई थी कि आप मुझे कैनेडा साथ लेकर जाओगे।”
“अगर मैं न लेकर जाऊँ तो अब तुम क्या कर लोगी? शब्दों से हँकार झलक रहा था।
सिमरनजोत एक बार तो काँप उठी। उसने समाचार-पत्रों में विदेशी लड़कों द्वारा शादी पश्चात इधर की लड़कियों को विधवा जैसा जीवन व्यतीत करने के लिए छोड़ जाने संबंधी कई घटनाओं के बारे में पढा था। उसे लगा कि उसके साथ भी ऐसा ही कुछ घटने वाला है। उसने मन ही मन फैसला किया और बोली, “करना क्या है, फैसला आप पर छोड़ती हूँ, या तो मुझे साथ ले जाने का प्रबंध कर लो, नहीं तो तलाक…”
सिमरोनजोत के चेहरे पर दृढ़ता के भाव देख जसविंदर को पाँव तले की जमीन खिसकती हुई लगी।
                        -0-

Monday 27 October 2014

पत्थर लोग



हमदरदवीर नौशहरवी

काली अँधेरी सर्द रात। नहर का किनारा। एक जीप रुकी।
हाँ, यह जगह ठीक है। टाँगों से खीच कर फेंक नीचे, फिर चलें। सर्दी के मारे जान निकली जा रही है।
“आज की रात जिंदा रहती तो एक रात और गर्म कर जाती।”
“कहती थी, मुझे क्या पता कि प्रधान साहब की अचकन की जेब से पचास रुपये किसने चोरी किए हैं, कोठी में रोज शराब की महफिल जुड़ती है। साली निकली बहुत पक्की, मानी नहीं।”
“हमने भी कौनसा इसे पीटा था। चारपाई पर लिटा कर प्यार ही तो किया था। ही…ही…ही…।”
                               °°°

प्रातःकाल। गहरा अँधेरा। जागीरदार का ट्रैक्टर रुका। जागीरदार का लड़का नीचे उतरा। पासे बैठे दोनों बिहारी मजदूर भी उतर आए।
“कौन है? बेहोश पड़ी…नंगी…!”
“ये तो दुलारी लगती है। बड़े सरदार के यहाँ काम करती है। बेचारी बेवा…!”
“चलो चलें। हमें क्या? कोई भी हो।”
“दुलारी ही है।” बिहारी मजदूर ने उसकी सलवार ऊपर कर उसका नंगेज ढ़क दिया।
                               °°°
कोहरे भरी सुबह। चारों तरफ धुंध। कार रुकी। वे बाहर आए।
इतनी सर्दी में बाहर क्यों पड़ी है?”
दाँत देख, जैसे मोती हों।
यह तो मरी हुई लगती है। सर्दी से मर गई शायद।
रात को हमारे पास आ जाती। खुद गर्म रहती और हमें भी गर्म रखती।
सहकती है शायद।
चल यार चलें। यूँ ही पुलिस खींचती फिरेगी।
                           -0-