Thursday 21 October 2010

छुटकारा

केवल राम रोशन

बस अड्डे के एक कोने की तरफ सवारियों की भीड़ लगी रहती। कई तरफ जाने वाली बसें यहाँ रुकती थीं और साथ ही बड़े पीपल की छाँव दूर तक फैली हुई थी। इस तरफ ही एक कोने में एक मोची सुबह से शाम तक जूतों की मरम्मत करता और अपना व अपने बच्चों का पेट पालता। वह एक बात से बेहद दुखी था कि सवारियाँ उसके पिछली ओर कोने में पेशाब कर जातीं। वह सारा दिन उसकी बदबू से दुखी रहता। अगर किसी को पेशाब करने से रोकता तो वह उसके गले पड़ जाता।
आखिर उसे एक तरकीब सूझी। उसने उस जगह को साफ किया और पाँच ईंटों को सफेदी कर वहाँ एक मढ़ी-सी बना दी। रोज सुबह वह वहाँ एक चवन्नी रख देता।
अब जो कोई भी उधर जाता, पेशाब करने की बजाए एक सिक्का फेंक, माथा टेक कर वापस लौट आता।
अब मोची बदबू से छुटकारा भी पा चुका था और रोज शाम को पाँच-छः रुपये की रेजगारी भी घर ले जाता था।
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Friday 15 October 2010

मायाजाल

दर्शन मितवा

वह सहज रूप से चला जा रहा था।
सामने सड़क पर पड़े पैसे उसे नज़र आए तो चारों ओर से चौकस हो, पैसे उठा उसने अपनी मुट्ठी खोली तो देखा, दो रुपए थे। एक-एक के दो नोट।
क्षण भर के लिए वह खुश हुआ और रुपए जेब में डाल कर आगे चल पड़ा। फिर उसे जैसे कुछ याद गया। उसकी रफ्तार पहले से धीमी हो गई।
अगर कहीं ये दोनों दस-दस के नोट होते तो बात बन जाती।यह सोचकर वह उदास हो गया।
कम से कम कुर्ता-पायजामा हीअगर कहीं सौ-सौ के होते तोपौ-बारह हो जातीवाह रे भगवान, जब देने ही लगा था तो बस दो ही!…तू देता तो है, पर हाथ भींचकर। कभी एक साथ दे दे बीस-पचास हजारहम भी जिंदा लोगों में हो जाएँ
सोचते-सोचते उसने अपना हाथ पैंट की जेब में ऐसे डाला जैसे रुपए वास्तव में ही दो से बढ़ गए हों। मगर उसका कलेजा धक से रह गया।
उसका हाथ जेब के आरपार था। दो रुपए फटी जेब से कहीं गिर गए थे।बसवह रुआँसा हो गया, “वे भी गए साले।आज की रोटी का ही चल जाता।
वह फटी जेब में हाथ डाल वहीं खड़ा हो गया और चारों ओर ऐसे निगाह डाली जैसे अपना कुछ खोया हुआ ढूँढ रहा हो।
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