Sunday 30 August 2015

सरमाया



कुलविंदर कौशल

वह कई वर्षों बाद गाँव आया था। शाम को घूमता-घुमाता वह चौपाल की तरफचला गया। गाँव की चौपाल के पास कभी उसने बहुत यत्न से गाँव के नौजवान शहीद का बुत लगवाया था। बुत के चारों ओर चारदीवारी कर फूल-बूटे लगवा दिए थे। शहीद के बुत को देख, उसे बहुत आघात पहुँचा। पक्षियों ने बीठ कर कर बुत का बुरा हाल कर रखा था। चारदीवारी के भीतर उगे घास-फूस ने अपना कद बहुत बढ़ा लिया था। बाहर कुछ बुजुर्ग लोग बैठे ताश खेल रहे थे।
राम-राम जी!” वह बुजुर्गों के पास पहुँच कर बोला।
राम-राम बेटा, कब आया?”
आज सुबह ही आया था। बाबा जी, आपने गाँव के शहीद की यादगार का बहुत बुरा हाल कर रखा है
तुझे पता ही है बेटा, सरकार कहाँ देशभक्त सूरबीरों की कदर करती हैं। सरकार कोई ग्रांट-ग्रूंट दे तो इसे बैठने लायक बनाएँ। एक बुजुर्ग ने उसकी बात बीच में ही काटते हुए कहा।
ताऊ जी, क्या हम इतने गए-गुज़रे हैं कि अपने शहीदों की यादगार की देखरेख के लिए भी सरकार के मुँह की ओर देखें। हम लोग हर वर्ष यज्ञ करवाने पर लाखों खर्च देते हैं, पर अपने सरमाये की देखभाल के लिए कुछ समय भी नहीं दे सकते। शर्म आती है मुझे तो कहता हुआ वह आगे बढ़ गया।
सारी रात उसे नींद नहीं आई। दिन निकलते ही वह कस्सी उठा चौपाल की ओर चल दिया। जब वह वहाँ पहुँचा तो उसने देखा उससे पहले ही कई बुजुर्ग सफ़ाई के काम में जुटे हुए थे।
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Monday 24 August 2015

बदलता मौसम



अवतार सिंह दीपक (प्रिं.)

आप! हैडमास्टर साहब! धन्य हो गए हम, भाग कुल गए! आओ, आ जाओओए छोटू, कुरसी साफ कर के ला, यहाँ मेरे पास। आप बताइए क्या लोगे? ठंडा या गर्म?” प्रकाशक कश्मीरी लाल हैडमास्टर साहिब का स्वागत करते हुए कह रहा था।
मेहरबानी! किसी चीज की जरूरत नहीं। हैडमास्टर साहिब ने जवाब दिया, इधर से गुज़र रहा था, सोचा आपके दर्शन करता जाऊँ। और सुनाइए, काम-धंधा कैसा चल रहा है?”
आपकी कृपा है जी। इस बार तो सब कुछ दाँव पर लगा दिया है। पुस्तकें छापना तो एक जूआ है, हैडमास्टर साहब। पर इस बार तो पासा सीधा पड़ता दिख रहा है। अच्छे लेखक भी तो किस्मत से ही मिलते हैं। इस बार विद्यार्थियों के लिए विज्ञान की चार पुस्तकें प्रकाशित की हैं। ये चारों पुस्तकें दुग्गल जालंधरी से लिखवाई हैं। लेखक ने बहुत मेहनत की है। छापने में हमने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। कश्मीरी लाल ने रौ में आते हुए कहा, आफसैट पर छपे चार-रंगे चित्र देखकर पाठक की भूख उतरती है। सिनेमा संबंधी इस पुस्तक बोलती तस्वीरें ने तो राष्ट्रीय पुरस्कार जीता है। सरकार ने इसकी पाँच हजार प्रतियां खरीदी हैं। बिजली की बातें पुस्तक को तो राज्य सरकार ने आठवीं कक्षा में सप्लीमेंट रीडर लगा दिया है। कोई भी पुस्तक खोल के देखिए, विज्ञान के नीरस मैटर को भी जीवन की उदाहरणों से मनोरंजक बना दिया है। हर बात बच्चे के दिमाग में झट से बैठ जाती है। कोई पुस्तक खोल कर तो देखिए।
सच में ही पुस्तकें तो कमाल की हैं। ये पुस्तकें तो लाइब्रेरी का श्रृंगार बनेंगी। कीमत भी वाजिब है। हैडमास्टर साहिब ने तारीफ की।
हैडमास्टर साहब, ये बताओ पैप्सी लोगे या चाय? गर्मी बहुत है, पैप्सी ठीक रहेगी। और उसने नौकर को आवाज लगाई, ओए छोटू, भाग कर अमीचंद की दुकान से ठंडी पैप्सी लेकर आ।
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पैप्सी आ गई तो कश्मीरी लाल बोला, हाँ तो हैडमास्टर साहब आप आर्डर कब भेज रहे हो?”
कैसा आर्डर?”
अपने स्कूल की लाइब्रेरी के लिए पुस्तकों का।
पर कश्मीरी लाल जी, मैं तो पिछले सप्ताह रिटायर हो गया हूँ।
रिटायर शब्द सुनते ही हाथ में पकड़ी ठंडी बोतल उसे गर्म लगने लगी।
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Tuesday 18 August 2015

बहू बनाम बहू



हरभजन सिंह खेमकरनी

नया स्कूटर खरीदने संबंधी घर में विचार-विमर्श चल रहा थी। कभी बैंक से कर्जा लेने की बात चली तो कभी किसी रिश्तेदार से पैसे उधार लेने की। पर कोई भी बात सिरे नहीं लग रही थी।
मनजोत की सास इशारे से उसे अपने मायके से पैसे लाने को कह चुकी थी क्योंकि उसके भाई पैसे वाले थे। अगर वे बहन को स्कूटर ले देंगे तो उसे ही आने-जाने की मौज हो जाएगी। लेकिन मनजोत सास की बात सुनी-अनसुनी कर देती। परंतु कुछ दिनों से पति का रूखा व्यवहार भी उसे सास की बात ही दोहराता लगता। उसे लगा कि दहेज रहित करवाए गए आदर्श विवाह के समय तय किए गे उसूलों में दरारें पडने लगी हैं। पिछले कुछ समय से घर के कुछ सदस्यों के व्यवहार में आई तबदीली से भी वह परेशान थी। उसकी सोच इस बात पर आ कर अटक जाती कि एक माँग पूरी होने पर दूसरी माँग उठ खड़ी होगी। इसलिए उसने खामोशी का दामन पकड़े रखा।
घर में होती खुसुर-फुसुर को महसूस कर मनजोत के ससुर ने अपनी पत्नी को पास बैठा कर समझाते हुए कहा कि वह बहू को मायके से पैसे लाने के लिए परेशान न करे। आगे से पत्नी तमक कर बोली, अपना आदर्श अपने पास रखो, शादी के समय तो बाप-बेटे ने दहेज न लेकर बहुत बल्ले-बल्ले करवा ली। अब बहू स्कूटर के लिए पैसे ले आएगी तो उन्हें क्या घाटा पड़ जाएगा, बहुत पैसा है उनके पासआजकल तो लोग कारें दे रहे हैं।
“पैसे वाले तो तेरे भाई भी हैं, उनसे स्कूटर के लिए पैसे माँग ले, तू भी तो इस घर की बहू ही है। मुझे कौन सा उन्होंने शादी के समय स्कूटर दिया था।” पति ने हँसते हुए कहा।
पति की बात सुन पत्नी माथे पर आए पसीने को दुपट्टे से पोंछने लगी।
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Tuesday 11 August 2015

गर्म कोट



बलदेव कैंथ

पुराना कोट बेकार हो गया था। वह घिस गया था और दो-तीन जगह सुराख भी हो गए थे। सर्दी का जोर बढ़ गया था। मैंने सोचा, पुराना कोट किसी गरीब आदमी को दे देना चाहिए। पर सवाल था किसे दूँ?
अचानक गली के कोने में रहने वाले शामू को दरवाजे में ठिठुरते हुए देखा। उसने अपने ऊपर पतली-सी मैली चादर ली हुई थी। मैंने आवाज़ लगाकर कोट उसे दे दिया। कोट पहन, खुशी से फूला, वह बोला, मास्टर जी, गर्म लगता हैरब्ब तुम्हें और ज्यादा दे
उसे खुश देख मेरे मन को बहुत संतुष्टि मिली। चलो किसी के काम तो आया। पत्नी तो पुराने कपड़ों वाले को एक रुपए में बेचने लगी थी।
मैं नहाने के बाद दरवाजे पर खड़ा था। ठंड बहुत थी। चारों ओर धुँध थी। मुझे शामू घर के सामने से गुजरता दिखाई दिया। वह ठिठुर रहा था। मुझे उस पर बहुत गुस्सा आया। कंजर ने इतनी ठंड में भी कोट नहीं पहना! मैंने उसे बुला कर कोट के बारे में पूछा।
पहले तो वह चुप रहा, फिर उदास-सी आवाज़ में बोला, वह कोट तो बंतो ने दस रुपए में बेच दिया। घर में आटा खत्म हो गया था। बच्चे रोटी वह आगे कुछ न बोल सका। मैंने उसकी आँखों में देखा। पानी से भीगी आँखें जैसे समंदर में बगावती लहरें उठ रही हों।
वह चला गया, मगर मैं गर्म कपड़ों में भी सुन्न हुआ खड़ा था।
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