Monday 9 June 2014

तीस वर्ष बाद



श्याम सुन्दर अग्रवाल

आज फिर सुखविंदर की माँ का फोन आया था।
पत्नी ने बताया तो नरेश व्याकुल हो उठा, तीसरे दिन ही फोन आ जाता है किसी न किसी का। दिमाग खराब कर रखा है।
सुखविंदर इंजनियरिंग कालेज में उनकी बेटी बबली का सहपाठी रहा था। दोनों एक-दूसरे को चाहते थे। न लड़का कहीं और शादी करने को तैयार था न लड़की। लड़का ठीक था, बहुत पढ़ा-लिखा और सुंदर भी। परंतु था जात-बिरादरी से बाहर का। इसलिए समाज में होने वाली बदनामी से नरेश बहुत डर रहा था। उसका विचार था कि थक-हार कर जब लड़का कहीं और शादी कर लेगा तो बबली स्वयं उनकी बात मान लेगी।
थोड़ा सहज हुआ तो उसने पूछा, क्या कहती थी वह?
कुछ नहीं, बधाई दे रही थी। सुखविंदर की सरकारी नौकरी लग गई। वह एक बार आपसे मिलना चाहती है।
ना हमें किस बात की बधाई? क्या लगता है वह हमारा? लगता है आज उसकी मिलने की इच्छा पूरी करनी ही पड़ेगी। आज देकर आता हूँ उसे अच्छी तरह बधाई।नरेश क्रोध में उबल रहा था।
तीस किलोमीटर के लगभग का फासला था। एक घंटे पश्चात नरेश सुखविंदर की कोठी पर था। ड्राइंगरूम की शीतलता ने उसके क्रोध की ज्वाला को थोड़ा शांत किया। एक लड़की ठंडे पानी का गिलास रख गई। थोड़ी देर बाद ही लगभग पचास वर्ष की एक औरत ने आकर हाथ जोड़ ‘नमस्कार’ कहा और वह उसके सामने बैठ गई।
वह सोच ही रहा था कि बात कहाँ से शुरु करे, तभी सुखविंदर की माँ की शहद-सी मीठी आवाज उसके कानों में पड़ी, बहुत गुस्से में लगते हो, नरेश जी।
आवाज उसे जानी-पहचानी सी लगी। उसके बोलने से पहले ही वह फिर बोल पड़ी, एक बात पूछ सकती हूँ?
नरेश जैसे वशीभूत हो गया, ज़रूर पूछिए।
आपको सुखविंदर में कोई कमी दिखाई देती है?
कमी…कमी तो कोई नहीं, मगर जब जात-बिरादरी ही एक नहीं…
बस…केवल जात-बिरादरी…?
आपको यह मामूली बात लगती है?
वह कुछ देर उसे देखती रही और फिर बोली, मुझे पहचाना?
नरेश ने याददाश्त के घोड़े बहुत दौड़ाए, लेकिन असफल रहा। सुखविंदर की माँ को जैसे सदमा पहुँचा, …अपनी दीपी को भी नहीं पहचाना!
नरेश तो जैसे आसमान से नीचे गिर कर ज़मीन में धँस गया। उसकी कालेज की संगिनी दीपेंद्र, उसकी ज़िंदगी का पहला और आखिरी प्यार, दीपी। वह दीपी को अवाक् देखता रह गया।
तीस वर्ष पहले हमारे माँ-बाप ने जात-बिरादरी के नाम पर जो फैसला किया था, क्या वह सही था?
नरेश की नज़रें झुक गईं। बड़ी कठिनाई से उसके मुख से निकल पाया, …समाज में बदनामी…
सुखविंदर और बबली तीस वर्ष पहले के नरेश और दीपी नहीं है। वे तो बंधन में बंध चुके हैं, आप उन्हें अलग नहीं कर सकते। अब तो निर्णय यह करना है कि आपने इस घर से रिश्ता जोड़ना है या नहीं।
नरेश पूरी तरह खामोश था। उसे कुछ नहीं सूझ रहा था। उसकी ओर चाय का कप बढ़ाते हुए दीपेंद्र ने कहा, आपने गुस्से में पानी नहीं पिया। गुस्सा दूर हो गया हो तो चाय की घूंट…।
नरेश ने कप पकड़ते हुए कहा, आपको बधाई देना तो भूल ही गया।
किस बात की जनाब?
बेटे सुखविंदर को सरकारी नौकरी मिलने की।
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Sunday 1 June 2014

रिश्ते की बुनियाद



श्याम सुन्द दीप्ति (डॉ.)

आज किटी पार्टी की बारी रमा की है। उसकी तैयारी में अनिल पूरी भाग-दौड़ कर रहा है। पूरे चाव से जुटा हुआ है, उम्र चाहे तेरह-चौदह साल ही है।
उसका यह ‘अनिल’ नाम पता नहीं उसके माँ-बाप ने रखा था या उसकी इस मालकिन रमा ने।
अनिल रमा के पास लगभग पिछले छः महीने से है। शहर में लग रही फैक्टरी में जब मज़दूरों की ज़रूरत थी तो बहुत से मज़दूर यू.पी., बिहार से आए थे। अनिल अपने पिता के साथ आ गया था। माँ को अनिल के साथ बहुत लगाव था, बड़ा बच्चा होने के कारण। वह उसे नहीं भेजना चाहती थी। घर की मंदी हालत, पाँच बच्चे, और कोई चारा भी नहीं था।
अनिल सारा दिन रमा के काम में हाथ बंटाता। घर से कचहरी तक।
रमा का काम क्या था? कागज-पेपर तस्दीक करने। नौटरी का काम था। रमा ने विवाह के बाद वकालत नहीं की थी। यह तो दोनों बच्चों के सैट होने के बाद, वक्त काटने के लिए मेज-कुर्सी लगा ली थी कचहरी में। रमा की गैर-हाजिरी में अनिल वहाँ ग्राहकों को बैठाता, उन्हें चाय-पानी पूछता। वह मुंशी था एक तरह से।
किटी पार्टी में औरतों का आना शुरू हो गया था। आते ही अनिल उन्हें ठंडा पिलाता। बहुत-सी औरतें यद्यपि अनिल को पहली बार मिल रही थीं, परंतु रमा की तरफ से उससे परिचित थीं–‘हर बात ध्यान से सुनता है’, ‘दिल लगा कर काम करता है’, हर आए-गए को पूरी तवज्जो देता है’।
खूब सजा है आज तो। सूट भी नया डाला लगता है।एक औरत ने कहा।
हाँ, बीबी जी ने नया कपड़ा लाकर दिया। हमने पहली बार नए कपड़े पहने हैं बीबी जी के घर आकर।
इसी तरह किसी और ने कहा, खूब जंच रहा है आज तो, हीरो बन गया है, पंजाब में आकर।
अनिल ने पूरी बात सुनकर कहा, मैं न रोज नहाता हूँ। साबुन से पहली बार नहाया।और फिर जरा शरमा कर बोला, हमारा रंग भी गोरा हो गया है।
साथ बैठी औरत को जैसे मजाक सूझा, अच्छा! फिर तो तू जब घर जाएगा, तेरी माँ ने अगर तुझे पहचाना ही नहीं तो?
अच्छा ही है। नहीं पहचानेगी तो, मैं यहाँ ही रह जाऊँगा. बीबी जी के पास।अनिल ने एकदम जवाब दिया।
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