Sunday 26 February 2012

बदला हुआ स्वर


सतिपाल खुल्लर

बहू उसके आगे रोटी की थाली और पानी का गिलास रख गई थी। वह चुपचाप रोटी खाने लगा।
यह भी कोई ज़िंदगी है! पिछले कई वर्षों से ऐसा ही चल रहा है। घर में कोई समारोह हो, उससे पूछा तक नहीं जाता। सभी को चाय-पानी पिलाने के बाद उसकी बारी आती है।’ रोटी खाते हुए वह सोच रहा था। उसे लगा, वह तो जैसे घर का सदस्य ही नहीं। फिर उसे अपने पिता की याद आई जो सौ वर्ष की उम्र भोग कर मरा था। कितना दबदबा था उसका घर में। वह अपने पिता का ध्यान भी तो बहुत रखता था। लेकिन उसकी पत्नी व बच्चे उसकी सेवा से बहुत दुखी थे। कभी-कभी उसे लगता कि अपनी इस अवस्था के लिए वह स्वयं ही जिम्मेदार है।
मैंने इस सब्जी से रोटी नहीं खानी। मेरे लिए कोई और सब्जी बनाओ।’ गाजर की सब्जी से उसके पिता को जैसे चिढ़ थी।
‘बापू, ऐसे न किया कर।’ उस दिन उसने जैसे अपनी बेबसी ज़ाहिर की थी।
‘ये मेरा पाठ करने वाला मोढ़ा और गुटका है, इन्हें यहाँ से कोई न हिलाए। मैंने सौ बार कहा है, पर किसी पर कोई असर ही नहीं होता।’
‘बापू, धीरे बोल…।’
‘मुझे किसी का डर है, मेरा घर है, मैंने इसे अपने इन हाथों से बनाया है।’ बापू क्रोध में और भी ऊँचे स्वर में बोलता।
‘यह बात तो ठीक है।पर उसे लगता कि बापू व्यर्थ ही क्लेश किए रखता है।
इस तरह की बातें घर में नित्य ही होती रहती थीं। तब वह सोचता, मैं यह सब नहीं करूँगा। जो पकाया, बनाया हुआ होगा, वही खा लिया करूँगा। चारपाई पर बैठकर ‘राम-राम करता रहूँगा। ज़िंदगी का क्या है, आदमी को जीने का ढंग आना चाहिए।
पर अब उसे लगने लगा कि वह तो बस रोटी खाने का ही साझेदार है। घर में उसका कोई अस्तित्व ही नहीं। आज रोटी खाते हुए वह बापू को याद कर रहा था। बापू ठीक ही तो करता था। आदमी को घर में अपना अस्तित्व तो बनाकर रखना ही चाहिए। कोई काम तो हो। भोजन करने के बाद आम दिनों के विपरीत वह ज़ोर से खांसा और अपने पोते को आवाज़ दी, जैसे बापू उसके बेटे को बुलाया करता था। आवाज़ सुनकर घर के सदस्यों के कान खड़े हो गए।
हैं, दादा जी! यह तो दादा जी की आवाज़ है!उसका अपना बेटा ही अपनी माँ की ओर देखकर बोला।
इससे पहले वह कभी ऊँची आवाज़ में नहीं बोला था। उसकी पत्नी भागकर आई। पलभर के लिए उसे लगा, जैसे उसका पति नहीं, उसका ससुर उसके सामने बैठा हो।
सुन, आगे से सब्जी मुझ से पूछ कर बनाया कर। वह अपनी बहू को सुनाता हुआ बोला।
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Saturday 18 February 2012

तरह-तरह के लोग


दर्शन मितवा

मैं एक भयंकर स्थिति में फंसकर एक  लाइन में खड़ा हूँ और काँप रहा हूँ। मेरे साथ घटने वाली यह घटना मेरी सूरत के कारण है या मौजूदा माहौल के कारण, मुझे समझ नहीँ आ रही है। मेरे चेहरे पर उगी लंबी दाढ़ी हवा में बेखौफ उड़-उड़कर मेरे गाल थपथपा रही है। मुझे इससे मोह है। सिर पर कटिंग किए बालों से मुझे इश्क है।
शहरवालों का रवैया मेरे प्रति कुछ अजीब-सा है। प्रायः दो तरह के लोगों से ही पाला पड़ता रहा है। पहली तरह के लोग मुझे सलाह देते हैं, यार, ये दाढ़ी कटवा दे। अपने लोगों के ये अच्छी नहीं लगती।
दूसरी तरह के लोग मुझे हमेशा यही नसीहत देते हैं, दाढ़ी तो रख ही ली, अब सिर पर पगड़ी भी बाँध लिया कर।
इन दोनों तरह के लोगों को प्रायः मैं अनसुना, अनदेखा कर देता हूँ।
बीते दिनों एक तीसरी तरह के लोगों से मेरा पाला पड़ा। मैं शहर की सड़क पर चला जा रहा था कि तेजी से आ रही एक जीप अचानक मेरे सामने आकर रुकी। उसमें से एक पुलिस अफसर तथा कुछ सिपाही फुर्ती से उतरे और उन्होंने मुझे उठाकर जबरन जीप में डाल लिया, तेरा ख्याल है कि सिर के केस कटवाकर तू हमसे बचकर निकल जाएगा!
किसी तरह ले-देकर इन तीसरी तरह के लोगों से मैंने अपना पीछा छुड़ाया था।
परंतु आज इससे भी बड़ी घटना घट गई है और मैं मुश्किल में फँसा लाइन में खड़ा थर-थर काँप रहा हूँ।
तू क्या समझता है कि दाढ़ी रखकर हमें धोखा देकर निकल जाएगा?
स्टेनगन थामे ये चौथी तरह के लोग खाड़कू(उग्रवादी) हैं।
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Saturday 11 February 2012

पेंशन

हरजिंदर कौर कंग

तीन वर्ष हो गए थे, छिंदर को विधवा-पेंशन के लिए बैंक के चक्कर लगाते। अभी तक एक बार भी पेंशन नहीं मिली थी। आज फिर वह बैंक में खड़ी थी। वहाँ उसे मुहल्ले में रहने वाली ठेकेदार की पत्नी मिल गई। यद्यपि दोनों एक ही मुहल्ले में रहती थीं, लेकिन दोनों का आपस में अधिक मेल-मिलाप नहीं था।
सुना कैसे हो रहा है गुज़ारा?ठेकेदारनी बोली।
बस टैम पास कर रही हूँ। गुजारा कैसा, बहन जी।
न, बेटा नहीं करता कुछ? वाहेगुरू की कृपा से, जवान हो गया अब तो।
कारखाने में जाता है काम पर। दाल-रोटी चल जाती है।
तू भी कोई काम-वाम ढूँढ़ लेती।
मैं भी सिलाई-कढ़ाई करके थोड़ा बहुत कमा रही हूँ। रो-रोकर निगाह कम हो गई। सूई में धागा ही नहीं डलता अब तो।छिंदो ने ठेकेदारनी से कहा, आप सुनाओ बहन जी! परिवार ठीक-ठाक? बाहर वाले बेटे का आया कोई फोन-फून?
सब ठीक है। फोन तो आता रहता है। बेटा हुआ है उसके। और छोटे ने भी इंजनियरिंग कर ली है।
फिर तो दोहरी बधाई हो बहन जी!
तुझे भी वाहेगुरू खुशियां बख्शे। अब तो बस किसी चीज की कमी नहीं, बस सेहत ही कुछ ढ़ीली रहती है।
क्या हुआ सेहत को?
आग लगे इन घुटनों से नहीं हिला जाता। छः महीने की पेंशन जमा हो गई, लेने नहीं आया गया।
कैसे आए फिर?
ठेकेदार सा'ब आप आए हैं साथ, गाड़ी पर लेकर…अच्छा, वे बाहर इंतजार कर रहे होंगे मेरा। तू भी पता कर ले अपनी पेंशन का, आई कि नहीं। इतना कह ठेकेदारनी बाहर निकल सफारी गाड़ी में सवार हो गई।
आज फिर छिंदो खाली हाथ बैंक से निकली और रिक्शा की तलाश करने लगी।
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Saturday 4 February 2012

सबक


सुरिंदर कैले

दीनदयाल के बेटे रतनपाल की तीसरी सगाई की बात चल रही थी। पहिले दो बार सगाई टूट जाने के कारण वह इस बार बहुत चौकस था। पहिले जो कुछ हुआ उससे सबक ले पाँव फूँक-फूँक कर रख रहा था।
लड़का पढ़ा-लिखा है और सरकारी नौकरी में भी है। अपने परिवार और लड़के की नौकरी के स्टेट्स के अनुसार दहेज ज़रूर लेना है। हमारे घर टी.वी., फ्रिज़, ए.सी., कार वगैरा सब है, इसलिए दहेज में नकद रकम ही चाहिए।दीनदयाल ने अपने जीवन-स्तर को बयान करते हुए दहेज की माँग रख दी।
ठीक है, जैसी आपकी इच्छा। हम सामान न देंगे, नकद पैसे दे देंगे, बात तो एक ही है।
लड़की वालों ने सोचा, लड़का सुंदर है, पढ़ा लिखा है और अच्छी नौकरी पर भी लगा है। घर भी देखने योग्य है। क्या हुआ अगर लड़के का बाप जरा लालची है। एक बार खर्च कर अगर लड़की सुखी रहती है तो नकदी देने में भी कोई हरज नहीं है। बातचीत के बाद फैसला हुआ कि लड़की वाले दहेज के रूप में पाँच लाख रुपये नकद देंगे।
निश्चित दिन पर दीनदयाल लड़के की बारात लेकर लड़की वालों के घर पहुँच गया।
जल्दी करो। लड़के को फेरों पर बिठाओ, लग्न का समय निकलता जा रहा है।पंडित जल्दी कर रहा था।
पहले दहेज की रकम, फिर फेरे।
दीनदयाल पहले नकदी लेने पर अड़ गया। लड़की वालों ने रुपयों का बैग पकड़ाया तब शादी की रस्में शुरु हुईं।
समधियों से बारात की अच्छी खातिरदारी करवा, डोली लेकर मुड़ने लगे तो दीनदयाल ने रुपयों वाला बैग लड़की के पिता को पकड़ाते हुए कहा, यह लो अपनी अमानत। आपका माल आपको लौटा रहा हूँ।
 लड़की का बाप घबराकर दीनदयाल के मुँह की ओर देखने लगा। वह डर रहा था कि यह लालची व्यक्ति अब कोई और माँग रखना चाहता है।
दीनदयाल ने स्थिति को स्पष्ट करते हे कहा, मेरे बेटे की सगाई दो बार टूट चुकी थी। कारण एक ही था कि मैं दहेज रहित शादी करना चाहता था। इससे लड़की वालों को यह संदेश गया कि शायद लड़के में कोई नुक्स है। इसले सगाई टूट गई। मैं तीसरी बार सगाई टूटने नहीं देना चाहता था। इसलिए ही मजबूरी में मुझे दहेज माँगना पड़ा। अब शादी हो चुकी है, इसलिए मैं दहेज लौटा रहा हूँ।
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