रणजीत
कोमल
दो-तीन डॉक्टर
बदलने के बाद भी पाला सिंह की छाती का दर्द ठीक नहीं हुआ था। उससे दर्द सहन नहीं
होता था। डॉक्टरों ने उसकी तीमारदारी में लगे बेटों को किसी बड़े अस्पताल में इलाज
करवाने की सलाह दी।
पाला सिंह को लग रहा था कि उसका आखरी समय आ गया है। उसने
आँसू भरी आँखों से अपने बेटों तथा जवान बेटी की तरफ देखा और बोला, “बेटो, अब तो पल भर का भरोसा
नहीं…ऊपर वाले ने पता नहीं कब बही खोल कर बुलावा भेज देना है…तुम्हारी माँ की लंबी
बीमारी के कारण, बेटी को अपने हाथों विदा नहीं कर सका। अब तुमने मिलकर अपनी माँ को
सँभालना है और बहन के हाथ पीले करने हैं।” बातें करते हुए पाला सिंह ने एक गहरी साँस ली और वही उसकी
अंतिम साँस बन गई।
पिता के आंतिम संस्कार के बाद बेटों ने फैसला किया कि बीमार
माँ की जिम्मेदारी सबकी बराबर की होगी और शादी तक बहन माँ के साथ रहेगी।
तय समय के बाद माँ बेटी के साथ जब जूसरे बेटे के घर रहने
पहुँची तो भीतर से उनके कानों में आवाज़ सुनाई दी, “मैंने कहा जी, तुम्हारी
माँ और बहन आ गईँ। तुम्हारी माँ का रोना तो रोना ही पड़ेगा, साथ में तुम्हारी बहन
की रखवाली भी करनी पड़ेगी। अब मैं किस कुएँ में गिरूँ?”
-0-
No comments:
Post a Comment