Sunday, 16 February 2014

प्रताप



सुखचैन थांदेवाला

बाबे निम्मे ने फिर हँसी-खुशी मना लिया कल रविदास का जन्मदिन?गली में आ रहे नंबरदार ने अपने घर के आगे बैठे निम्मे मोची को सरसरी तौर पर पूछा।
नाम तो उसका निर्मल सिंह था, पर गाँव वाले उसे निम्मा कहकर बुलाते थे और पीठ पीछे ‘निम्मा मोची’ कहते थे। निम्मा पहले जिमींदारों के मज़दूर के तौर पर सारे गाँव के जूते गाँठने का काम करता था। अब उसके बेटे और पोते ने बस-अड्डे पर जूतों की दुकान कर ली थी। निम्मा होश सँभालने के समय से ही अमृतधारी सिक्ख था। अब उसके पास कोई काम न था। वह अक्सर चौपाल पर गुरु-ज्ञान की बातें करने में लगा रहता। वह प्रत्येक वर्ष गुरु रविदास के जन्मदिवस पर अपने घर गुरु-ग्रंथ-साहिब के सहज-पाठ का भोग डालता था।
नंबरदार! हम जैसे गरीब भला क्या मनाएँगे बाबे का जन्मदिन! बेटे ने ऐसे ही मुझसे बाहर हो कार्ड बाँट दिए नगर में। कहता, पुन्य-दान हो जाएगा। लंगर भी बहुत बना लिया, पर लोग नहीं आए। फिर अड्डे पर बसें रोक-रोक कर खिलाया लोगों को। देग(प्रसाद का हलवा) फिर भी बच गई। उसे जल-प्रवाह कर के आया सुबह। क्या बात, इस बार तो तू भी नहीं आया, नंबरदार? निम्मे ने उलाहना दे अपनी सारी व्यथा सुनाई।
बाबा, मेरे तो रिश्तेदारी में मौत हो गई थी, संस्कार पर गया था, नहीं मैं तो ज़रूर आता भोग पर।नंबरदार अपना स्पष्टीकरण दे, फिर बोला, बाबा, आज कनेडा वालों के बुज़ुर्ग की बरसी पर नहीं जाना तुमने?
हाँ, मुझे भी जाना है, तैयार हूँ,निम्मे ने अँगोछा कंधे पर रखा और उठते हुए कहा, नंबरदार, हम तो सारे नगर के साँझे आदमी हैं।
कनेडा वालों के पटरी-फेर इलाके से बहुत लोग पहुँचे हुए थे। कोठी के सामने का खुला मैदान कारों, जीपों व स्कूटरों से भरा पड़ा था। रंग-बिरंगे शामियाने लगे हुए थे। श्री गुरु ग्रँथ साहिब की हजूरी में पंडाल संगत से खचाखच भरा हुआ था। माथा टेकने वालों की कतार लगी हुई थी। प्रसिद्ध रागी-जत्थे कीर्तन कर रहे थे। कनेडा वाला सरदार शाही लिबास में संगत के बीच विराजमान था।
निम्मा कतार में खड़ा, कल अपने घर पड़े भोग और आज पड़ रहे भोग में फर्क के बारे सोचने लगा। सारी संगत तब हैरान रह गई, जब निम्मे ने गुरु ग्रंथ साहिब को माथा टेक कर फिर कनेडा वाले सरदार को जा माथा टेका। सरदार ने दोनों हाथों से उसे रोकते हुए कहा, बाबा, तू तो पुराना अमृतधारी सिंह है, तुझे तो पता है कि गुरु ग्रंथ साहिब से बड़ा कोई नहीं होता। फिर मुझ पर क्यों भार चढ़ाते हो।
जवाब में निम्मे ने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा, नहीं सरदार जी, प्रताप तो सारा तुम्हारा ही है। गुरु ग्रंथ साहिब का भोग तो हमारे घर भी पड़ा था। सारे नगर में घर-घर कार्ड भी बाँटे थे, पर मुश्किल से कुछेक लोग ही पहुँचे।
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