निरंजन
बोहा
अपने पति के
व्यवहार में आई तबदीली को महसूस कर, वह खुश भी थी और हैरान भी। एक मुद्दत के बाद
राजीव ने उस पर दिल खोल कर प्यार लुटाया था। थकावट व अनिद्रा की वजह से उसका
बिस्तर से उठने को मन नहीं कर रहा था। बहुत समय बाद पति संग व्यतीत की हसीन रात की
याद को दिल की गहराई में सुरक्षित रखने के लिए उसने अपना सारा ध्यान उस ओर ही
केंद्रित किया हुआ था। मीठे-मीठे सरूर में उसकी पलकें बंद हो रही थीं।
अपने पति की नज़रों में वह न तो सुंदर थी और न ही अक्ल की
मालिक। पति के खानदान को वह जायदाद का वारिस भी नहीं दे सकी थी। अपने पति व
सास-ससुर की हर ज्यादती को सहने के काबिल तो वह हो चुकी थी, पर जब कभी राजीव उसे
तलाक देने की धमकी देता तो उसकी सहनशक्ति जवाब दे जाती। वह घंटों तक रोने के लिए
मजबूर हो जाती। अब तो दो रातों के मधुर-मिलन ने उसके सारे शिकवे दूर कर दिए थे।
“उठ हरामजादी, सात बज गए। अभी तक बिस्तर पर पड़ी है।” झँझोड़कर उठाते हुए राजीव ने उसके हसीन सपनों को
भंग कर दिया। पति को अपने पहले रूप में आया देख वह काँप उठी।
“उठ, रोज करती थी न मायका, मायका, आज तुझे सदा के लिए मायके
भेज देना है।” राजीव गरजा।
“ये सुबह ही तुम्हें क्या हो गया?…रात को तो…” वह बात पूरी न कर सकी। उसका गला भर आया।
“वह तेरी इस घर में आखरी रात थी। मैंने सोचा कि जाती बार का
फायदा उठा लूँ।” एक कमीनी मुस्कान उसके पति
के होठों पर चिपकी हुई थी।
पहली बार गुस्से भरी झनझनाहट उसके सारे शरीर में से गुज़र
गई। उसे लगा कि सचमुच उसका पति उसके योग्य नहीं है।
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