Monday, 15 June 2009
रिश्ते का नामकरण
दलीप सिंह वासन
उजाड़ से रेलवे स्टेशन पर अकेली बैठी लड़की को मैंने पूछा तो उसने बताया कि वह अध्यापिका बन कर आई है। रात को स्टेशन पर ही रहेगी। प्रात: वहीं से ड्यूटी पर जा उपस्थित होगी। मैं गाँव में अध्यापक लगा हुआ था। पहले घट चुकी एक–दो घटनाओं के बारे में मैंने उसे जानकारी दी।
“आपका रात में यहाँ ठहरना ठीक नहीं है। आप मेरे साथ चलें, मैं किसी के घर में आपके ठहरने का प्रबंध कर देता हूँ।”
जब हम गाँव में से गुजर रहे थे तो मैंने इशारा कर बताया, “मैं इस चौबारे में रहता हूँ।”
अटैची ज़मीन पर रख वह बोली, “थोड़ी देर आपके कमरे में ही ठहर जाते हैं। मैं हाथ–मुँह धो कर कपड़े बदल लूँगी।”
बिना किसी वार्तालाप के हम दोनों कमरे में आ गए।
“आपके साथ और कौन रहता है?”
“मैं अकेला ही रहता हूँ।”
“बिस्तर तो दो लगे हुए है?”
“कभी–कभी मेरी माँ आ जाती है।”
गुसलखाने में जाकर उसने मुँह–हाथ धोए। वस्त्र बदले। इस दौरान मैं दो कप चाय बना लाया।
“आपने रसोई भी रखी हुई है?”
“यहाँ कौन–सा होटल है!”
“फिर तो खाना भी यहीं खाऊँगी।”
बातों –बातों में रात बहुत गुजर गई थी और वह माँ वाले बिस्तर पर लेट भी गई थी।
मैं सोने का बहुत प्रयास कर रहा था, लेकिन नींद नहीं आ रही थी। मैं कई बार उठ कर उसकी चारपाई तक गया था। उस पर हैरान था। मुझ में मर्द जाग रहा था, परन्तु उस में बसी औरत गहरी नींद सोई थी।
मैं सीढि़याँ चढ़ छत पर जाकर टहलने लग गया। कुछ देर बाद वह भी छत पर आ गई और चुपचाप टहलने लग गई।
“जाओ सो जाओ, सुबह आपने ड्यूटी पर हाजि़र होना है।” मैंने कहा।
“आप सोए नहीं?”
“मैं बहुत देर सोया रहा हूँ।”
“झूठ।”
“…”
वह बिल्कुल मेरे सामने आ खड़ी हो गई, “अगर मैं आपकी छोटी बहन होती तो आपने उनींदे नहीं रहना था।”
“नहीं-नहीं, ऐसी कोई बात नहीं।” और मैने उसके सिर पर हाथ फेर दिया। -0-
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3 comments:
रिश्तों के अहसास ही तो हैं जो भावनाओं को जन्म देते हैं. सुन्दर कथा.
waah waah
atyant uttam aur saarthak rachna........
Rachna achhi lagi,badhai.
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