Friday, 12 June 2009

मां



जसबीर ढंड
आंखों से लगभग ज्योतिहीन बूढ़ी मां अपनी टेढ़ी–सी अनघड़त लाठी से राह टटोलती हर किसी से पूछती फिरती है, “ अरे बेटा, यहां कहीं हमारा बंसा खड़ा है, ठेला लिए ?”
शहर की सबसे अधिक भीड़भाड़ वाली सब्जी मंडी, जहां फाटक बंद होने से ट्रैफ़िक जाम हो जाता है और अच्छी–भली नज़र वाले को भी राह बनाना दूभर हो जाता है ।
“ कौन सा बंसा माई ? यहां तो नित्य नये से नया आता है… देख कैसे हनुमान की पूंछ जैसी लंबी–लंबी लाइनें लगी हुई हैं, ठेलों की…।”
“ अच्छा बेटे ! मेरा बंसा तो केलों का ठेला लगाता है…।”
“अच्छा–अच्छा, है, है…।”
ठेलेवाला पांच–सात ठेले छोड़ कर खड़े बंसे को हाथ के इशारे से ऊंची आवाज़ में बोल कर बुलाता है ।
बंसा अपना ठेला छोड़ कर तेजी से आता है ।
“ अरे संभाल माई को…।”
“क्या बात है ? यहां क्या लेने आई है ?” बंसा जैसे विकट–सी स्थिति में मां को देखकर भड़क उठता है। वह जैसे मां को मां कहने में भी शरमा रहा है ।
“ अरे बेटे, दवाई ले दे ।” बूढ़ी मां मिन्नत करती है ।
“ कैसी दवाई ? क्या हुआ तुझे ?” बेटे को क्रोध चढ़ गया ।
“ बेटे, चार दिन हो गए ताप चढ़ते को, तुम्हे तो फुरसत ही नहीं मिलती काम–धंधों से ।”
“ चार दिन हो गए…तू हंसे को कह देती । यहां जो भागी आई है ।”
“ हंसे को कहा था, उसने ही तेरे पास भेजा है…।”
“ मेरे पास भेजा है… क्यों ? मैने ठेका ले रखा है ?”
“ ओ बंसे, गाय तेरे केले खा गई…।” साथ के ठेलेवाला ऊंची आवाज़ में बंसे को बुलाता है।
हरल–हरल करती फिरती हैं आवारा भूखी गाएं, दूध देने से हट जाने पर डंडे मार–मार लोग घर से भगा देते हैं । जहां उनका दांव लगता है, मुंह मार लेती हैं।
बंसा मां को वहीं खड़ी छोड़ अपने ठेले की ओर भाग लेता है । “ बेटे बंसे ! रात तो बहुत कंपकंपी छिड़ी…ले देगा दवाई ? बेटे, मुझसे तो अब खड़ा भी नहीं हुआ जाता…मन घबरा सा रहा है…!”
पर बंसा वहां होता तो जवाब देता।
“ चली जा माई ! कौन लेकर देगा तुझे यहां कैपसूल ? कोई गऊ, सांड़ फेट मार देगा, या कोई ट्रक कुचल जाएगा…दुनिया से भी जाएगी।”
दो जवान जहान शादीशुदा बेटों की मां भरे संसार में अकेली खड़ी है !
“ अच्छा बच्चे !” एक और आह बूढ़ी मां की छाती के भीतर से निकल कर ब्रह्मांड तक फैल जाती है ।•

20 comments:

श्यामल सुमन said...

संवेदना को झकझोरने वाली कहानी जिसका स्पष्ट संकेत मूल्यों की गिरावट की ओर है। कहते हैं कि-

माँ के दिल को तोड़कर रहा न कोई शाद।
माँ हो जिसपर मेहरबाँ उसका घर आबाद।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.

निर्मला कपिला said...

जिस माँ का एहसास ही मन को झकझोर देता है आज उस मांम के लिये क्यों सभी संवेदनायें मर गयी हैं माँ ने जिस पेट मे रख कर अपना लहू पिलाया आज बेटा उसके पेट मे दो दाने डालने मे ं भी असमर्थ् है दवा तो दूर की बात है मार्मिक कहानी आज के यथार्थ को दिखाती आभार्

शोभा said...

bahut hi marmik katha hai. sundar abhivyakti ke liye badhayi.

रंजना said...

आँखें भींग गयी....दर्द गले में अटक कर चुभने लगा है.......पर इससे क्या होगा......माएं ऐसे ही भटकती रहेंगीं,उनके दर्द उनके खोखजायों के कलेजे को नहीं छू पाएंगी....

बहुत बहुत आभार आपका .......

Unknown said...

jaise kisi ne chhuri mar mar kar hriday chhlni kar diya ho, jaise kisi ne tezaab pila diya ho ya jaise kisi ne rom rom par angaare rakh diye hon .............kuchh aisa hi anubhav hua aapki yah karunantik laghukatha baanch kar

hay...hay.. hum kitne patit hote ja rahe hain ki duniya dikhane wali maa ko duniya me rahne k kabil bhi nahin chhodte..

JIYO DEEPSHIKHA JIYO....
haardik badhaaiyan

प्रकाश गोविंद said...

मन को झकझोरती उत्कृष्ट लघु कथा !

इतिहास अपने को दोहराता भी है !
कल को बेटे भी बूढे होंगे !

शुभकामनाएं !!


कृपया वर्ड वैरिफिकेशन की उबाऊ प्रक्रिया हटा दें !
लगता है कि शुभेच्छा का भी प्रमाण माँगा जा रहा है।

तरीका :-
डेशबोर्ड > सेटिंग > कमेंट्स > शो वर्ड वैरिफिकेशन फार कमेंट्स > सेलेक्ट नो > सेव सेटिंग्स

आज की आवाज

Unknown said...

अच्छा प्रयास।

Anonymous said...

शुभकामनाएं...

आशा है और भी कई बेहतरीन रचनाएं मिलेंगी....

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

जीवन की विसंगति को आपने अभिव्यक्ति दी है ।

मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है- फेल होने पर खत्म नहीं हो जाती जिंदगी-समय हो तो पढें और प्रतिक्रिया भी दें-

http://www.ashokvichar.blogspot.com

दिल दुखता है... said...

swagat hai.........

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

hamare aas paas aisa roj hota hai.aaj kal bujurg mata pita ko ghar chhod ke jana padta hai. narayan narayan

दिगम्बर नासवा said...

दिल को छूते हुवे है यह रचना.......... छोटी पर बहुत ही मार्मिक रचना है...... यथार्थ, सत्य

उम्मीद said...

आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . आशा है आप अपने विचारो से हिंदी जगत को बहुत आगे ले जायंगे
लिखते रहिये
चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
गार्गी

सुभाष नीरव said...

बेटी दीपशिखा, पहले तो बहुत बहुत बधाई नेट पर ब्लॉग की दुनिया में प्रवेश करने की, वह भी सार्थक प्रवेश। जसबीर ढ़ंड की यह लघुकथा "माँ" पाठकों के ह्रदय को स्पर्श करने में सक्षम है और एक बेहतरीन लघुकथा है। पंजाबी की श्रेष्ठ लघुकथाओं को तुम अपने इस ब्लॉग "पंजाबी लघुकथा" पर प्रकाशित करती रहो, धीरे धीरे अपनी गुण्वत्ता की वजह से यह एक दिन सबका हरमन प्यारा ब्लॉग बन जाएगा। मेरी ढ़ेरों शुभकामनाएं !

सुभाष नीरव said...

दीप बेटे एक गुजारिश है। अपने ब्लॉग से वर्ड वैरीफिकेशन की यह बंदिश हटा दो। इसका कोई लाभ भी नहीं है, यूँ ही टिप्पणी छोड़ने वाले को दिक्कत होती है और कभी कभी तो इसी दिक्कत की वजह से वह टिप्पणी करने से कतराने लगता है। मुझे अपनी टिप्पणी छोड़ने में काफी मशक्कत करनी पड़ी जो नेट की दुनिया और ब्लॉग की दुनिया से काफी दिनों से जुड़ा है, नया व्यक्ति तो खीझ उठेगा। मैंने अपने सभी ब्लॉग्स पर से यह बंदिश बहुत पहले ही हटा दी थी और अपने ब्लॉगर मित्रों से भी इसे हटाने की गुजारिश करता रहता हूँ।

RADIO SWARANGAN said...

अगर कहा जाए कि यह शाश्‍वत सत्‍य है तो यह कड़वा होगा, सच तो हमेशा ही कड़वा होता है । लघुकथा सच को बयान करती है । ब्‍लॉग जगत में आपका हार्दिक स्‍वागत है ।

Abhi said...

Hye,
Check this cool link
http://jabhi.blogspot.com

दीपशिखा said...

आपका सुझाव स्वीकार है, धन्यवाद।

राजेंद्र माहेश्वरी said...

bahut sunder

Unknown said...

Ek behtarin rachna.