Monday, 15 June 2015

निश्चिंत




डा. श्याम सुन्दर दीप्ति

रेणु अपने पति राजेश के साथ माँ से मिलने जा रही थी।
रेणु की शादी को लगभग एक महीना हो गया था। उसने शादी से पहले ही राजेश को एक बात स्पष्ट कर दी थी कि शादी के बाद वह अपनी माँ को अकेली नहीं छोडेगी। वह ओर माँ, दो ही सदस्य तो थे घर में। शादी के बाद उसकी माँ घर में बिलकुल अकेली रह जाएगी।
राजेश ने कहा था, मैं समझता हूँ तुम्हारी भावनाओं को, यह भी कोई कहने वाली बात है। यह तो हमारा फर्ज बनता है।
वे जब घर पहुँचे, रेणु की माँ घर के दरवाजे पर खड़ी चावला साहब को ‘बाय-बाय’ कर रही थी। उन्हें देख चावला साहब कार स्टार्ट करते-करते रुक गए।
राजेश व रेणु से मिल तथा उनका कुशल-क्षेम जान वे चले गए।
चावला साहब रेणु के पिता के करीबी मित्र रहे हैं। रेणु के पिता की मृत्यु के पश्चात उनका संपर्क इस परिवार से बना रहा। रेणु के विवाह में राजेश को भी चावला साहब की सरगर्म भूमिका का एहसास हुआ था।
जब रेणु की माँ उनके लिए पानी लेने गई तो राजेश ने कहा, रेणु, चावला अंकल को ‘बाय-बाय’ करते वक्त मम्मी की आँखें देखी थी?
क्या था आँखों में? रेणु एकाएक घबरा-सी गई।
खुशी ओर वियोग की मिली-जुली झलक थी।राजेश का जवाब था।
रेणु कुछ नहीं बोली। वह विचारमग्न हो गई कि राजेश की इस बात का क्या अर्थ है।
माँ से मिलने के पश्चात वे लौट आए थे, पर रेणु के मस्तिष्क में राजेश की कही बात घूम रही थी। वह सोचती रही– राजेश ने मम्मी के बारे में ऐसा क्यों कहा?
रात को बिस्तर पर लेटने के पश्चात रेणु ने राजेश से पूछा, क्या कह रहे थे तुम सुबह? तुमने मम्मी की आँखों में क्या देखा?
ओह! कुछ नहीं! तुमने कौन सा पहले नहीं देखा होगा…मैं तो कहना चाहता था…तुम यूँ ही मम्मी की चिन्ता करती हो, उनकी तरफ से निश्चिंत हो जाओ…वे वहाँ खुश हैं।राजेश ने रेणु के नज़दीक होते हुए कहा।
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Monday, 8 June 2015

औरत और मोमबत्ती



दर्शन मितवा

अच्छा तो इधर आ। वह औरत को घर के अंदर वाले कमरे में ले गया।
देख, यहाँ कितना अंधेरा हैऔर जब मुझे उजाले की जरूरत पड़ती है उसने जेब से दियासलाई निकाली और सामने कार्निश पर लगी मोमबत्ती जला दी।
कमरे में उजाला फैल गया।
देख, मुझे जब तक उजाला चाहिएयह जलती रहेगी।
वह औरत उसकी और देखती रही।
जब मुझे इसकी जरूरत नहीं होती तो…” कहते ही उसने मोमबत्ती को फूँक मार दी।
कमरे में अंधेरा पसर गया।
उस औरत ने उसके हाथ से दियासलाई की डिबिया ली और सामने कार्निश पर लगी मोमबत्ती फिर से जला दी।
पर, औरत कोई मोमबत्ती नहीं होती। उस औरत के होंठ हिले, जिसे जब जी चाहे गले से लगा लो और जब जी चाहे बुझा दो।
दोनों की नज़रें मिलीं।
“…समझे। और मैं एक औरत हूँ, मोमबत्ती नहीं।
वह आदमी चुप था।
औरत के चेहरे पर अनोखी चमक थी।
और अब मोमबत्ती जल रही थी।
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Monday, 1 June 2015

कंधा



जसबीर ढंड

एंबूलैंस में से उतार कर पापा की मृतक देह घर के दालान में रख दी गई है। रोना-पीटना मचा हुआ है।
माँ और हम चार बहनों को रिश्तेदार औरतें चुप करवाने का प्रयास कर रही हैं। सबसे पहले मैं, जो सब बहनों में से छोटी हूँ, चुप कर जाती हूँ।
अपने आँसू पोंछ कर माँ व तीनों बड़ी बहनों को चुप करवाती हूँ।
पता नहीं क्यों, मैं शुरू से ही परिवार से हटकर हूँ। जब मैंने होश संभाला तो पापा को शराब पीकर माँ को मारते देखा। बड़ी बहनें तो दूर शहरों के छात्रावासों में रहती थीं। वे तो कभी-कभार ही घर आती थीं। मैं ही माँ को चुप करवाती थी।
एक दिन पापा लड़कर घर से बाहर चले गए। उस दिन माँ ने मुझे बताया– ‘जब तेरा जन्म हुआ था, तब तेरे पापा साल भर मुझसे बोले नहीं थे। उन्होंने तुझे कभी गोद में भी नहीं उठाया था।’
भला माँ का या मेरा इसमें क्या दोष था?
मेरे मन में एक गाँठ-सी बंध गई थी उस दिन।
             मुझसे चार साल बाद जब मेरे भाई का जन्म हुआ था तो घर में कैसे जश्न मनाया गया था। कितने ही दिन तक पापा ने शराब का लंगर लगा के रखा था। हर ऐरे-ग़ैरे को पकड़ कर बैठक में बिठा लेते। शराब की पेटी बिस्तर के नीचे पड़ी रहती। ‘खूब पी यार! इस घर का वारिस पैदा हुआ है। हमारी अरथी को कंधा देने वाला आ गया! चीयर्ज़!’ और वे शराब से भरे काँच के गिलास टकराते।
लेकिन भगवान के घर का उस वक्त क्या पता था। लाड़-प्यार में पले बेटे ने नकल के सहारे मुश्किल से दसवीं की परीक्षा पास की। कभी माँ-बाप की हथेली पर अपनी कमाई का एक पैसा भी लाकर नहीं रखा। नशे में धुत्त किसी न किसी से लड़ाई मोल ले लेता।
हम सभी बहनें, अच्छी पढ़ाई कर, अच्छी पोस्टों पर लग गईं। अच्छे घर ब्याही गईं।
आज कहाँ है वह कुल का वारिस? बाप की अर्थी को कंधा देने से पहले ही पल्ला छुड़ा कर चला गया अगले जहान।
माँ का विलाप सहन नहीं हो रहा।
आज कौन तेरी अरथी को कंधा देगा, मेरे सिर के साईं?…किसके सहारे छोड़ चला रे मुझे ब्याह कर लाने वाले…!
माँ का विलाप धीरे-धीरे सिसकियों में बदल जाता है।
हम चारों बहनों ने अरथी को चारों ओर से कंधा देकर उठा लिया है।
लोगों में बड़े ज़ोर से खुसुर-फुसुर शुरू हो गई है।
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