सुलक्खन मीत
मक्खन सिंह जिस स्कूल में स्वयं पढ़ा था, वहीं वह अंग्रेजी
के लैक्चरर के तौर पर ड्यूटी संभालने जा रहा था। वह सोच रहा था—‘अभी कल ही तो मैं उस स्कूल में पढ़ता था। तब यह केवल हाई स्कूल था। वहाँ के मुख्याध्यापक
सरदार आत्मा सिंह बहुत ही परिश्रमी इंसान थे। सभी अध्यापक समय से स्कूल पहुँचते
थे, समय से वापस जाते थे। पढ़ाने के साथ-साथ अन्य गतिविधियों में भी दिलचस्पी लेते
थे। हर वर्ष स्कूल में विद्यार्थियों की संख्या पहले से अधिक होती।’
सोच में डूबा वह स्कूल
पहुँच गया। उसे ऐसा लग रहा था जैसे स्कूल में अवकाश हो। न ही बाहर, न ही कमरों में
कोई रौनक दिखाई देती थी। अवकाश का कोई कारण भी नज़र नहीं आ रहा था।
मक्खन सिंह ने दफ्तर में
जाकर अपनी हाज़री-रिपोर्ट दे दी। जब वह स्टाफ-रूम में पहुँचा तो वहाँ का दृश्य
बदला हुआ था। वहाँ बैठे लगभग सभी अध्यापक उसके लिए नए थे। पंजाबी का लैक्चरर मग्घर
सिंह उस का हमजमाती था। उसने मक्खन सिंह को पहली नज़र में ही पहचान लिया। मक्खन ने
देखा, वे सारे मेज के चारों ओर बैठे देसी शराब पी रहे थे। कमरे में रोस्टड मुर्गे
की खुशबू फैली थी। मक्खन के चेहरे के हाव-भाव देखते हुए उसे अपने साथ वाली कुर्सी
पर बैठाते हुए मग्घर सिंह ने पूछा, “मक्खन, फिर कैसा लगा स्कूल?”
मक्खन सिंह ने बेझिझक कहा, “मुझे तो ऐसा लगता है दोस्त, जैसे आज आत्मा सिंह मर गया हो।”
आत्मा सिंह के समय
स्कूल में पढ़े अध्यापकों को उच्छू आ गई।
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