Tuesday, 21 July 2015

ज़िंदगी




कुलविंदर कौशल

पिछले दिनों मेरी सहेली कमला के पति का निधन हो गया था। व्यस्तता के चलते मुझसे अफसोस प्रकटाने के लिए भी नहीं जाया गया। आज मुश्किल से समय निकाल उसके घर गई थी। कमला मुझे बहुत गर्मजोशी से मिली। मैं तो सोच रही थी कि वह मुरझा गई होगी, पूरी तरह टूट गई होगी। मगर ऐसा बिल्कुल नहीं लगा। उसके पति के बारे में बात करने पर वह चुप-सी हो गई। थोड़ी देर बाद गंभीर आवाज में बोली, मर चुकों के साथ मरा तो नहीं जाता।बच्चों के लिए मुझे साहस तो जुटाना ही होगा।
 हाँ, यह बात तो ठीक है, लेकिन अकेली औरत…” मैंने अपनी बात अभी पूरी भी नहीं की थी कि कमला की बच्ची रोती हुई हमारे पास आई।
मम्मा, देखो बबलू ने मेरा घर ढा दिया।
रोते नहीं बेटे, मैं बबलू को मारूँगी। मेरी अच्छी बच्ची घर को फिर से बनाएगी, जाओ बनाओ।
हाँ मम्मा, मैं फिर से घर बनाऊँगी। कहती हुई बच्ची बाहर भाग गई।
क्या कह रही थी तुमअकेली औरत?…मैं अकेली कहाँ हूँ। मेरे दो बच्चे हैं। देखना कुछ दिनों में ही बड़े हो जाएँगे।
हम बहुत देर तक बातें करती रहीं। जब मैं कमला के घर से बाहर निकली तो देखा उसके बच्चे दोबारा घर बनाकर खेल रहे थे।
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