Friday, 3 October 2014

सकून



                         
 डॉ. कर्मजीत सिंह नडाला

माँ, ये शराबी भी कभी सुधरते हैं…!
बात तो तेरी ठीक है बहू…नहीं सुधरते…मैंने तो सारी उम्र इस आदमी से मार खाई…मिन्नतें की…समझाया भी…प्यार भी करके देखा…पर यह तो पूरा ढ़ीठ माटी है।
माँ, मेरा बापू भी तो शराब पीता ही मरा था।…हटा नहीं…खत्म हुआ तो घर में शाँति, खुशहाली  आई।
बहू, ऐसे आदमी औरत के दुख को कहाँ समझते हैं…तुझे क्या बताऊँ, जब की इस आदमी के पल्ले पड़ी हूँ, कभी सुख नहीं देखा…काम बहुत किया, पर खाने को जूते ही मिले…अब तो तेरी शर्म भी नहीं करता। जब तेरे सामने मारता है तो मन करता है कि कुछ खाकर मर जाऊँ…।
आप ऐसे न कहा करो, मरें आपके दुश्मन…कभी इनका कोई इलाज नहीं करवाया?
इलाज भी करवाया, दवाई-बूटी भी दी…स्यानों से भी झाड़-फूँक करवाई, पर कोई असर नहीं हुआ…।
शहर में किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाना था। आजकल शहरों में नशा छुड़ने वाले डॉक्टर भी हैं। दाखल होने की भी जरूरत नहीं…दवा लाओ, खिलाओ और आदमी ठीक…।
बहू, छोड़…फायदा कोई नहीं होने वाला। अगर तू बहुत ही कहती है तो फिर से कर लेती हूँ कोशिश।
वह शहर गई। दवाई लेकर आई। रात को शराबी हुए पति को खिला भी दी।
सुबह काबल सिंह का शरीर चारपाई पर अकड़ा हुआ पड़ा था।
माँ जी, बापू तो हिलते ही नहीं…आपने शराब छुड़ाने वाली दवा ही दी थी?
हाँ बहू, धीरे बोल। डॉक्टर कहता था दस हज़ार लगेगा…शराब छोड़ देगा, पर गारंटी कोई नहीं कि फिर से पीने नहीं लगेगा। मैंने सोचा, दस हज़ार भी जाएगा और कल को फिर वही रंडी-रोना। मैंने दस हज़ार बचाया और दस रुपये की गेहूँ में डालने वाली गोलियाँ ले आई। रात को वही एक गोली दे दी थी।उसने धीरे-से बहू के कान में कहा।
हैं! माँ जी आपने सलफास की गोली खिला दी…अपना आदमी खो दिया…क्या फायदा हुआ?
अरी, क्यों नहीं फायदा हुआ…दवाई तो पूरा असर कर गई…देखना अब कभी शराब माँग भी गया तो…।
यह बात कहते जैसे उसके चेहरे पर अजीब-सा सकून था।
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