Saturday, 16 August 2014

ममता




रणजीत आज़ाद काँझला

मैं अपनी बीमार भाभी के बैड के पास बैठा सोच रहा था कि प्राणी का जीवन भी क्या है, जो पलों में पराया हो जाता है। मस्तिष्क में कई तरह के अच्छे-बुरे सवाल उठ रहे थे। अस्पताल में दुखी लोग ही आते हैं, या फिर उनके रिश्तेदार और मित्र।
भाभी के अगले बैड पर एक वृद्धा नीम बेहोशी की हालत में पड़ी थी। मैंने देखा, कुछ पढ़े-लिखे लोग अपनी पत्नियों सहित आए। बातों से पता चला कि वे वृद्धा के बहू-बेटे थे। वे सभी सरकारी नौकरी में थे। माँ के सिरहाने खड़ा साधारण-सा प्राणी कभी वृद्ध माँ का कंबल ठीक करता तथा कभी बेहोश माँ का चेहरा देख, गहरी उदासी में खो जाता।
अँधेरा बढ़ता जा रहा था। वृद्धा के नौकरी करते बहू-बेटे आवश्यक चीजों व दवा आदि के बारे में पूछताछ कर एक-एक कर जाने लगे। एक ने अपनी पत्नी से कहा, अगर आज की रात मैं माँ के पास रह जाऊँ तो ठीक रहेगा। तीन दिन से माँ के पास बैठा यह भाई अपनी कमर सीधी कर लेगा।
ऊँ-हूँ!…भाई साहब हैं न, और ये मां को कभी किसी के आसरे नहीँ छोड़ते।पत्नी ने आँखों ही आँखों में पति को घूरा।
नहीं भाई, तुम घर जाओ, यहाँ क्यों बेआरामी काटनी है। मैं हूँ न माँ के पास…।साधारण से दिखने वाले प्राणी ने जबान खोली।
वे दोनों पति-पत्नी माँ की ओर देखते अस्पताल से बाहर चले गए।
ये तुम्हारे भाई-भाभी थे?मैंने उसके उतरे हुए चेहरे को पढ़ते हुए पूछा।
हाँ…! ये मेरे भाई-भाभी हैं। मैं और मेरी माँ इकट्ठे रहते हैं। बाकी सब बाल-बच्चों सहित अपने अलग घरों में सुखी बसते हैं…।वह निरंतर बोलता जा रहा था।
तुम्हारे बाल-बच्चे?मेंने बीच में टोकते हुए पूछा।
जी, मेरा तो ब्याह ही नहीं हुआ…।
फिर तुम्हारी रोटी कौन बनाता है?मेंने उसे फिर से सवाल कर दिया।
यह मेरी माँ। मेरी माँ ही मेरा सब कुछ है।उसने माँ की ओर हाथ कर गहरा साँस लेते हुए कहा, मैं थोड़ा-बहुत काम कर लेता हूँ और माँ रोटी बना लेती है…अगर इसे कुछ हो गया तो…!इतना कह उसका गला रूँध गया और आँखों से आँसू बह चले।
कोई बात नहीं! फिक्र न करो, तुम्हारी माँ ठीक हो जाएगी। हौंसला रखो। किसी चीज या मदद की की ज़रूरत हो तो बताना, मैं यहीं हूँ।मैंने उसका साहस बढ़ाने के लिए कहा।
सरदार जी! अगर मेरी माँ को कुछ हो गया तो…तो मैं भी…।उसने काँपती आवाज में अपनी पगड़ी के छोर से आँखें पोंछते हुए कठिनाई से कहा।

उस अनब्याहे बेटे की आँखों से माँ की ममता के छिन जाने का भय साफ दिखाई दे रहा था।
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