रणजीत
आज़ाद काँझला
टैस्ट करवाने पर
पता लगा कि अर्चना के पेट में आया तीसरा बच्चा भी लड़की ही है। सास ने बहू पर
हुकुम चलाया, “जा इसे रफा-दफा करवा दे!
हमारी किस्मत में लड़का कहाँ…!”
“…माँ जी! इस बार…इस बार नहीं…नहीं!” ममता भरी आवाज थरथराई।
“कौन पालेगा इन्हें? कोई घाटा नहीं पड़ने वाला। चल तैयार हो जा, नर्सिंग-होम
जाने के लिए।” सास ने ताकीद की।
“माँ जी! मैं ऐसा नहीं…! आजकल लड़के –लड़की में कोई फर्क
नहीं रहा। बल्कि लड़कियाँ तो लड़कों से भी आगे निकल रही हैं। वेद-ग्रंथ भी यही
कहते कि संतान तो आदमी की किस्मत से होती है।” अर्चना दबी आवाज़ में कह
रही थी।
“अरी तू मुझे अक्ल दे रही है! उठ, चल मेरे साथ। आज इसका
खात्मा करके आऊँ।” सास आँखें दिखाते हुए
बोली, “नहीं जाएगी तो तुझे आग
लगा कर फूँक दूँगी।”
सास ने अर्चना को आग लगा कर फूँकने की अपनी मंद भावना अभी
प्रकट की ही थी कि अर्चना ने चंडी का रूप धारण कर लिया। वह अपनी सास पर झपट पड़ी
और उसकी अच्छे-से मुरम्मत कर दी।
आसपास के घरों की औरतें ‘हाय-बू’ की आवाजें सुन
दौड़ी आईं। उन्होंने देखा, अर्चना ने अपनी सास को घुटनों तले दबा रखा था। एकत्र
हुई औरतें सारी बात समझ गईं और सास को धिक्कारने लगी।
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