Sunday, 19 January 2014

एडजस्टमेंट



सुखमिंदर सेखों

शेर सिंह बोला, यार, अपनी भी कोई ज़िंदगी है! बस धँधा ही पीटते हैं।
हाँ, यह तो है। नौकरी में क्या बनता है। अफसरों की मौज है, या फिर बिजनैसमैन ऐश करते हैं।रामलाल ने शेर सिंह की बात को आगे बढ़ाया।
हाँ, अब अपने अफसर को ही देख लो। अच्छी तनख़ाह और छत्तीस तरह की सहूलतें। ऊपर की कमाई अलग।शेरसिंह ने बात को और स्पष्ट किया।
अपना अफसर है भी साला चलता पुर्जा। पता नहीं कैसे लोगों की जेब से पैसे निकलवा लेता है!
और क्या! तनख़ाह में तो साला गुज़ारा भी मुश्किल से होता है। इसने ऊपर की कमाई से लाखों की ज़मीन-जायदाद बना ली। शहर में इसने कई दुकानें बना कर किराए पर दी हुई हैं।शेर सिंह ने बातों का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए कहा, अय्यास भी हद दर्जे का है, अपने दफ्तर की कई लड़कियाँ इसने खराब कर रखी हैं। सुना है अपना काम करवाने के लिए यह लड़कियाँ ऊपर भी पेश करता है।
 डैडी, चाय।कहकर जब शेर सिंह की जवान लड़की ने चाय की ट्रे मेज पर रखी तो उनकी बातों का सिलसिला टूटा।
यह अपनी बेटी भी अब काफी बड़ी  हो गई है। कौनसी क्लास में पढ़ती है?रामलाल ने सरसरी तौर पर पूछा।
यह…इसने तो बी.ए. की है पिछले साल। टाईप सीखने जाती है। सोचता हूं यार अपने अफसर को कह कर इसे अपने दफ्तर में ही कहीं एडजस्ट…
आगे जैसे शेर सिंह के गले में कुछ अटक गया। उससे वाक्य पूरा न हो सका।
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