Monday 13 January 2014

जुर्रत



सुरजीत देवल

सलमा गाँव की बन रही फिरनी वाली सड़क पर मज़दूरों के साथ पत्थर डालने का काम करती थी। लंबा कद, कसा हुआ बदन और बिल्लौरी-आँखें देखने वाले का मन मोह लेते। उनका कबीला गाँव के मैदान में ठहरा हुआ था।
सूरज ढ़ले सलमा अपनी माँ के साथ वापस अपने डेरे पर जाती। तब गाँव के सरदारों के दो लड़के उसका पीछा करते। उनकी अश्लील हरकतों को सलमा बहुत सहन करती रही। पानी सिर से गुज़रता देख, एक दिन सलमा ने सब कुछ अपनी माँ को बता दिया। उसकी माँ ने भी बात अपने पति के कानों में से निकाल दी।
नित्य की तरह एक दिन दोनों लड़के उसके हुसन, जवानी व चाल की तारीफ करते डेरे तक आए। सलमा ने गर्दन घुमा कर पीछे देखा। वे इशारे से सलमा को बुला रहे थे। सलमा ने झट पीछे आ रही माँ से कहा, माँ, वे मुझे बुला रहे हैं।तना कह वह डेरे में चली गई।
सलमा की माँ रुकी। उसने लड़कों को पास बुलाया और जुर्रत कर बेझिझक बोली, हम गरीब हैं और आप सिरदारों के बेटे हो। अगर तुमको सलमा बहुत अच्छी लगती है तो रोज़-रोज़ उसके पीछे आने की मुसीबत हम दूर कर देते हैं। हम चार आदमियों को बुला कर अभी तुम्हारे साथ शादी कर उसे साथ भेज देते हैं।
पहले तो वे एक-दूसरे के मुँह की और देखने लगे, फिर एक बोला, नहीं, नहीं, माई, तुझे भ्रम हो गया है। हमने तो उसे कुछ नहीं कहा।
इतना कह वे वहाँ से खिसक गए।
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