गुरमेल
सिंह चाहल
सुबह ही
पति-पत्नी में एक छोटी सी बात पर हुई तकरार ने विकराल रूप धारण कर लिया। पति बिना
कुछ खाए-पीए, चुपचाप दफ्तर पहुँच गया। दफ्तर पहुँचते ही उसने पत्नी को मोबाइल फोन
से सँदेश भेज दिया–‘मैंने आज से रात की ड्यूटी करवा ली है।’
पत्नी कौनसा कम थी। उसने भी जवाब भेज दिया–‘मैं भी यही
चाहती थी, अच्छा किया।’
उन्होंने कई दिन न तो एक-दूसरे को बुलाया और न ही वे मिले।
सुबह जब पति घर आता तो पत्नी दफ्तर चली जाती। शाम को पत्नी के आने पर पति चला जाता।
घर के सभी काम-काज सँदेशों द्वारा ही हो रहे थे।
आज पत्नी का जन्मदिन था। पति ने सुबह ही सँदेश भेज ‘हैप्पी
बर्थडे टू यू!’ कह दिया। पत्नी ने भी ‘थैंक्यू!’ का एस.एम.एस कर दिया।
पति ने शाम को सँदेश भेज दिया–‘तेरे लिए गिफ्ट अलमारी में
बाएं तरफ रखा है, स्वीकार करना।’
पत्नी ने जवाब भेज दिया, ‘आपके लिए केक फ्रिज़ में पड़ा है,
मेरा नाम लेकर खा लेना।’
पति ने फिर सँदेश भेजा–‘दिन कैसे गुज़रते हैं?’
‘बहुत बढ़िया।’ पत्नी का एस.एम.एस. था।
‘और रातें?’ पति का अगला एस.एम.एस. था।
‘जब किसी अच्छे दोस्त का साथ मिल जाए तो रातें भी अच्छी
गुज़र जाती हैं।’
पत्नी का यह एस.एम.एस पढ़ते ही पति आग-बबूला हो गया। वह
तुरंत दफ्तर से निकला और सीधा घर पहुँच गया।
“सीमा! किस दोस्त की बात कर रही हो?” पति ने महीने बाद चुप्पी भँग करते हुए कहा।
“उस दोस्त की, जिसके सहारे मैं इतने दिनों से अकेलापन काट
रही हूँ।”
“कहाँ है तेरा वह दोस्त?” पति गुस्से में था।
“बैड्ड पर, रजाई में होना चाहिए शायद।”
“यहाँ तो कोई नहीं।” पति ने रजाई हटाते हुए कहा
“कोई क्यों नहीं, तुम्हारे सामने तो है।”
“यह तो मोबाइल-फोन है।” पति ने गौर से देखते हुए
कहा।
“बस यही मेरा दोस्त है। कभी गाने सुन लिए, कभी गेम खेल ली,
कभी…।” आँखों में आँसू भरती वह
पति की बाँहों में समा गई।
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एक खूबसुरत और परंपरागत विषयोँ से हटकर लघुकथा।
yuvaam.blogspot.com
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