Sunday, 14 April 2013

चौधराना



भीम सिंह गरचा

क्रोध से भरा रौनकी, दलित रामलाल के घर में घुसते ही कड़कती आवाज़ में बोला, ओ छौरे, मुझे किसी ने बताया है कि आज तेरी माँ ने हमारे खेत से चोरी चारा काटा है। अगर मैं रंगे हाथों पकड़ लेता तो हरामजादी को चोटी से पकड़ कर…
आँगन में पड़ी चारपाई पर बैठे रामलाल के दोनों लड़के गुस्से में एकदम उठे और रौनकी को जा चिपटे।
एक तो क्रोध में उबल रहा था, हमारी माँ को चोटी से पकड़ने वाला तू कौन होता है?
उसी समय रामलाल कमरे से बाहर निकला और रौनकी को बाँह से पकड़ता हुआ बड़े आराम से बोला, रौनक सिंह! क्यों उलझता है इन बच्चों के साथ…? आ कोई काम की बात करते हैं।
रामलाल रौनकी को कमरे में ले गया। उसे चारपाई पर बैठाया। स्वयं उसके पैरों में बैठता हुआ होठों पर खिसियानी-सी मुस्कान लाता हुआ बोला, रौनक सिंह, सरपंची के चुनाव सिर पर आ गए हैं। हमारे सभी परिवारों ने मीटिंग करके फैसला किया है कि इस बार गाँव का सरपंच तुम्हारे बाप मिल्खा सिंह को बनाया जाए। उससे अक्लमंद आदमी हमें तो कोई नजर नहीं आता।׆
रौनकी के चेहरे से क्रोध एकाएक गायब हो गया। उसके भीतर खुशी छलाँगें मार रही थी। इस विषय में उसने रामलाल से बहुत सी बातें की। फिर कमरे से बाहर आकर लड़कों से बोला, बेटा, मैं तो तुम्हारे साथ मजाक कर रहा था। चारे साले ने कहीं साथ जाना है! हमारे सभी खेत तुम अपने ही समझो।
दोनों लड़के हैरानी से रौनकी को देख रहे थे।
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