राजिन्दर बिमल
जिस जगह माँ मरी थी, वहाँ रात को तीनों बेटियों ने
रेत की एक ढेरी लगाकर तसला उल्टा रख दिया था ताकि सुबह देख सकें कि माँ अपने अगले
जन्म में किस जून में गई है।
अगले दिन तसला उठाया गया। बेटियों को लगा जैसे ढेरी
और ऊँची हो गई है।
“मंदिर लगता है! लगता है जैसे किसी
अच्छी जगह गई है।” बड़ी बोली, छोटी भी उससे सहमत थीं।
पास खड़ी दोनों बहुएँ दूर जाकर खुसर-पुसर करने
लगीं, “बल खाती लकीर तो साफ नज़र आ रही है, जरूर साँप बनी होगी अगले जन्म में,
साँप।”
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