Sunday, 13 January 2013

छूट के पैसे



कर्मजीत सिंह नडाला(डा.)

ओ जिंदी, चल खड़ा हो जा…कल क्यों नहीं आया?
हमारे गाँव में सरदारों की लड़की की शादी थी। उनके बारात आई थी…मैं वहाँ गया था।
साले, तुझे उन्होंने शादी में बुलाया था?कहते हुए अध्यापक ने दो थप्पड़ उसकी गाल पर जड़ दिए।
नहीं जी…।
फिर वहाँ जबरन घुस बर्फी-पकौड़े खाए होंगे…स्कूल आने की क्या जरूरत थी…तुझ जैसों को पढ़ाई की क्या चिंता…नहीं पता कि पढ़ाई का क्या मोल है…।
मास्टर जी!…शादी में खाने की तरफ तो किसी ने जाने ही नहीं दिया…और मैं कोई मिठाई-पकौड़े खाने थोड़ा गया था…।
फिर भूतनी के तू वहाँ आम लेने गया था…करता हूं आज मैं तेरी छित्तर-परेड़…चल कान पकड़।
मास्टर जी, मुझे न मारो…मैं तो कल का ही बहुत थका हुआ हूँ…मुझे तो रात बुखार भी हो गया था…सारी रात नींद भी नहीं आई।
मार के डर से पाखंड करता है…सच-सच बता कहाँ गया था?
जी शादी में छूट चुगने गया था…भूखा-भाना…गिरते पड़ते…पैर कुचलवाते, पैसे चुगता रहा…मुश्किल से पंद्रह रुपये इकट्ठे हुए।कहते हुए जिंदी की आँखों में आँसू आ गए।
अच्छा तो यह कमाई तू मेरे लिए करता रहा!…सुसरे…पंद्रह रुपये के लिए सारा दिन खराब कर दिया…पढ़ाई तेरे बाप ने करनी थी?
मास्टर जी, आप ही ने तो कहा था कि जब तक तू किताब नहीं लाएगा, मैं तुझे क्लास में नहीं आने दूँगा। जी, मेरा बापू मज़दूरी करता है। हमारे पास किताब लाने को पैसे नहीं। मैं छूट के पैसों की किताब ले आया…अब तो आप…।
जिंदी के मुँह पर थप्पड़ मारने को उठा अध्यापक का हाथ हवा में ही उठा रह गया।
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