बूटा
राम
मुझे अपने
सहकर्मी जगतार के बेटे के एक्सीडेंट बारे पता चला। मैं उसका हालचाल जानने हेतु
तुरंत अस्पताल पहुँच गया। जगतार उस समय अस्पताल में नहीं था। उसकी पत्नी लड़के के
पास थी।
“सति श्री ’काल बहन जी!”
उसने दोनों हाथ जोड़कर ‘सति श्री अकाल’ कबूल कर ली। मुझे
समझ नहीं आ रहा था कि बात कैसे शुरु करूँ। कुछ क्षण बाद मैंनें कहा, “बहन जी, कैसे हो गया यह
एक्सीडेंट?”
“यह सुबह अपनी ड्यूटी पर जा रहा था। अचानक मोटर-साइकिल के
आगे कुत्ता आ गया। इससे कंट्रोल नहीं हुआ…।”
“रब्ब का शुक्र करो कि बचाव हो गया। वैसे सिर पर तो चोट नहीं
लगी?”
“पगड़ी करके सिर की चोट से तो बचाव हो गया। पर एक तरफ ज़ोर
से गिरने के कारण लात टूट गई…अब…।” उसकी आँखों में पानी आ गया।
“लड़के की जान बच गई। उस मालिक का शुक्र करो। जवान है, ज़ख़्म
जल्दी ही भर जाएँगे।” मैंने ढ़ारस बँधाया।
“जवान होने का तो दुःख है, वीर जी! कहाँ हमने नौकरी लगे
लड़के का रिश्ता अच्छे घर में करना था…पर अब तो इसका मोल ही खत्म हो गया। पता ही
नहीं अब तो कोई इसे लड़की भी देगा या नहीं…।”
उसकी बात सुनकर मेरे पाँवों के नीचे से जमीन खिसक गई।
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