Wednesday 14 November 2012

कीमत



जगदीश राय कुलरियाँ

मैंने कहा जी! आप दारू पीने में लगे हो… पता है समय कितना हो गया?…रात के बारह बजने वाले हैं…अपना श्याम आज पहली बार फैक्टरी गया है और अब तक नहीं आया। मेरा मन तो बहुत घबरा रहा है…भागवंती ने अपने पति सेठ रामलाल से कहा।
वह कौनसा बच्चा है, आ जाएगा…तू तो ऐसे ही घबरा रही है…थोड़ी देर और देख ले…नहीं तो फोन करके पता कर लूँगा।
कुछ देर बाद दरवाजे की घंटी बजी तो भागवंती को चैन मिला।
क्यों बेटा, इतनी देर करदी? आजकल वक्त बहुत बुरा है…मेरी तो जान ही मुठ्ठी में आई हुई थी।भागवंती बेटे से बोली।
अरे कोई फोन ही कर दिया कर…तेरी माँ चिंता कर रही थी…अच्छा बता तुझे अपनी फैक्टरी कैसी लगी?रामलाल ने बेटे से कहा।
फैक्टरी तो ठीक है पापा, पर मुझे यह बताओ कि फैक्टरी में सभी प्रवासी मज़दूर ही क्यों रखे हुए है, जबकि हमारे पंजाबी लोग बेरोजगार फिर रहे हैं।
अरे बेटे, अभी तेरी समझ में नहीं आएँगी ये बातें।
नहीं पापा, बताओ?
बेटे, तुझे पता है कि अपनी फैक्टरी में कैसा काम है। जरा सी लापरवाही से आदमी की मौत हो जाती है…अगर कोई प्रवासी मज़दूर मर जाए तो ये दस-बीस हज़ार रुपये लेकर समझौता कर लेते हैं…लेकिन अपने वाले तो लाखों की बात करते हैं…
सेठ रामलाल ने खचरी हँसी हँसते हुए शराब का एक और पैग अपने गले के नीचे उतार लिया।
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