Thursday, 29 November 2012

मोल



बूटा राम

मुझे अपने सहकर्मी जगतार के बेटे के एक्सीडेंट बारे पता चला। मैं उसका हालचाल जानने हेतु तुरंत अस्पताल पहुँच गया। जगतार उस समय अस्पताल में नहीं था। उसकी पत्नी लड़के के पास थी।
सति श्री ’काल बहन जी!
उसने दोनों हाथ जोड़कर ‘सति श्री अकाल’ कबूल कर ली। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि बात कैसे शुरु करूँ। कुछ क्षण बाद मैंनें कहा, बहन जी, कैसे हो गया यह एक्सीडेंट?
यह सुबह अपनी ड्यूटी पर जा रहा था। अचानक मोटर-साइकिल के आगे कुत्ता आ गया। इससे कंट्रोल नहीं हुआ…।
रब्ब का शुक्र करो कि बचाव हो गया। वैसे सिर पर तो चोट नहीं लगी?
पगड़ी करके सिर की चोट से तो बचाव हो गया। पर एक तरफ ज़ोर से गिरने के कारण लात टूट गई…अब…।उसकी आँखों में पानी आ गया।
लड़के की जान बच गई। उस मालिक का शुक्र करो। जवान है, ज़ख़्म जल्दी ही भर जाएँगे।मैंने ढ़ारस बँधाया।
जवान होने का तो दुःख है, वीर जी! कहाँ हमने नौकरी लगे लड़के का रिश्ता अच्छे घर में करना था…पर अब तो इसका मोल ही खत्म हो गया। पता ही नहीं अब तो कोई इसे लड़की भी देगा या नहीं…।
उसकी बात सुनकर मेरे पाँवों के नीचे से जमीन खिसक गई।
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Tuesday, 20 November 2012

चिकना घड़ा



हरभजन खेमकरनी

बी.ऐस. गिल की नेम-प्लेट पढ़ते ही अमरीक सिंह गिल ने बैल बजाई तो एक बुजुर्ग ने गेट खोला।
गिल साहब को मिलना है, दफ्तर से आया हूँ।बुजुर्ग को उसने आदर सहित कहा।
आ जाओ, बैठक में बैठे हैं।
वह बैठक की ओर हुआ तो वह बुजुर्ग भी आ गया। गिल साहिब ने अपने पिता जी से उसकी जान-पहचान करवाई, बापू जी, ये अमरीक सिंह गिल मेरे साथ ही अफसर हैं।
फिर तो ये अपने ही हुए!चेहरे पर मुस्कराहट लाते हुए बुजुर्ग ने कहा।
दफ्तरी मामलों से फारग हो वे दो-घूंट पीने लगे तो बुजुर्ग भी उनका साथी बन गया।
धर्मपाल की ओर से हवा में छोड़े गए अधूरे वाक्य ‘गिल साहब का गोती अफसर आ गया, अब लगेगा पता। कहते हैं न कि एक अकेला और दो ग्यारह…ने अमरीक सिंह गिल को सुबह से ही परेशान किया हुआ था। इस अधूरे वाक्य में कड़वाहट, ईर्ष्या, डर और न जाने क्या-क्या आ मिला था। शायद गोत्र-भाई समझकर ही मुझे घर बुलाया हो। तीसरे पैग के खत्म होते ही वह नशे की लोर में बोला, गिल साहब! शायद गोत-भाई होने के कारण ही आपने यह कष्ट किया हो, लेकिन जो बात चार दिन बाद कोई बताएगा, वह मैं आज ही बता देना चाहता हूँ कि मैं गिल नहीं हूँ। यह तो मेरा गाँव ‘गिल कलाँ’ होने के कारण मेरे नाम के साथ जुड़ गया।
छोड़ यार इन बातों को। पचास साल हो गए अपने को आजाद हुए, पर इस जात-गोत ने अभी भी हमें पाँच सौ साल पहले जितना ही जकड़ा हुआ है। तुम्हारी इस साफगोई ने मेरे दिल में तुम्हारी इज्जत और भी बढ़ा दी है। वैसे मुझे पहले से ही पता है कि तुम मज्हबी-गिल हो।
इतनी बात सुनते ही बुजुर्ग के माथे पर बल पड़ गए। अमरीक सिंह पैग खाली करता हुआ उठा और इज़ाज़त लेकर गेट की ओर बढ़ा। अभी वह स्कूटर स्टार्ट करने ही लगा था कि उसे काँच का गिलास टूटने की आवाज इस तरह से सुनाई दी जैसे उसे जानबूझकर दीवार पर मारा गया हो।
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Wednesday, 14 November 2012

कीमत



जगदीश राय कुलरियाँ

मैंने कहा जी! आप दारू पीने में लगे हो… पता है समय कितना हो गया?…रात के बारह बजने वाले हैं…अपना श्याम आज पहली बार फैक्टरी गया है और अब तक नहीं आया। मेरा मन तो बहुत घबरा रहा है…भागवंती ने अपने पति सेठ रामलाल से कहा।
वह कौनसा बच्चा है, आ जाएगा…तू तो ऐसे ही घबरा रही है…थोड़ी देर और देख ले…नहीं तो फोन करके पता कर लूँगा।
कुछ देर बाद दरवाजे की घंटी बजी तो भागवंती को चैन मिला।
क्यों बेटा, इतनी देर करदी? आजकल वक्त बहुत बुरा है…मेरी तो जान ही मुठ्ठी में आई हुई थी।भागवंती बेटे से बोली।
अरे कोई फोन ही कर दिया कर…तेरी माँ चिंता कर रही थी…अच्छा बता तुझे अपनी फैक्टरी कैसी लगी?रामलाल ने बेटे से कहा।
फैक्टरी तो ठीक है पापा, पर मुझे यह बताओ कि फैक्टरी में सभी प्रवासी मज़दूर ही क्यों रखे हुए है, जबकि हमारे पंजाबी लोग बेरोजगार फिर रहे हैं।
अरे बेटे, अभी तेरी समझ में नहीं आएँगी ये बातें।
नहीं पापा, बताओ?
बेटे, तुझे पता है कि अपनी फैक्टरी में कैसा काम है। जरा सी लापरवाही से आदमी की मौत हो जाती है…अगर कोई प्रवासी मज़दूर मर जाए तो ये दस-बीस हज़ार रुपये लेकर समझौता कर लेते हैं…लेकिन अपने वाले तो लाखों की बात करते हैं…
सेठ रामलाल ने खचरी हँसी हँसते हुए शराब का एक और पैग अपने गले के नीचे उतार लिया।
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Wednesday, 7 November 2012

औलाद



उषा दीप्ति

वर्तमान समय में जि़न्दगी की रफ्तार इतनी ते़ज और उलझन भरी हो जाएगी, यह किसी ने सोचा भी नहीं था। करमा अब काफ़ी बीमार रहने लग पड़ा था। आँखों की नज़र भी कमज़ोर हो गई थी। इस बुढ़ापे में, औलाद के बावजूद भी वहे अकेले थे। आपस में एकदूसरे के साथ दुख बाँटने के सिवा, उनके पास बचा ही क्या था।
बेटा परदेश में था। चाहे उसकी खुशी और आगे तरक्की करने के लक्ष्य से ही, करमे ने उसे बाहर जाने को हाँ कही थी।
बेटे को जब बीमारी के बारे में पता चला तो पत्नी ने कहा, ‘‘इतनी सी बीमारी  के लिए लाखों रुपए की टिकट खर्च करोगे। छोड़ो, फ़ोन पर ही पता कर लेते हैं।’’
‘‘हाँ! बापू से बात हुई है, वह भी यही कहता है, रहने दो....पर उसकी आवाज़ में उदासी थी।’’
 बेटे ने भी उदास होते कहा, ‘‘बापू ने तो सारी उमर यही कहा है, हमारी खुशी ही देखी है। पर मेरा मन ही नहीं मानता।’’ कहकर वह बापू से मिलने के लिए तैयारी में लग गया।
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