Monday, 15 October 2012

दर्पण



राजिंदर कौर ‘वंता’

समाज से अमीर-गरीब, ऊँच-नीच व रंग-नस्ल की बीमारी को जड़ से उखाड़ देने का अपनी कलम से प्रयास करने वाला वह प्रतिभावान लेखक था। अपनी समाज-सुधार वाली कृतियों के लिए उसका कई बार सम्मान भी हो चुका था।
आज वह अपने दसवीं में पढ़ रहे बेटे के स्कूल में हो रहे समागम में बैठा था। उस के मस्तिष्क में इसी विषय पर एक कहानी का प्लाट घूम रहा था। मंच पर नाटक खेला जाना था। अचानक पर्दा उठा। उसने देखा कि पड़ोस में रहने वाला मोची का बेटा बादशाह का रोल अदा कर रहा था। उसका लड़का नौकर के रोल में उसे ‘जहाँपनाह’ कहते हुए बड़े अदब से सिर झुका रहा था।
कम्बख्त को कोई और रोल नहीं मिला करने को?उसने साथ बैठी पत्नी को कोहनी मारते हुए कहा।
उसकी पत्नी उसके मुख से समाजवाद का दर्पण चूर-चूर होता देख हैरान थी।
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