अनवंत कौर
विवाह के पाँच साल बाद हुए पहले बच्चे का जन्मदिन था। दोनों उसे धूमधाम से
मनाना चाहते थे। पार्टी के लिए सब-कुछ एक महीना पहले ही बुक करवा दिया गया। उन
दोनों की हार्दिक इच्छा थी कि उस वाहेगुरू का धन्यवाद भी किया जाए, जिसने यह
अमूल्य सौगात दी है।
कोलकाता जैसी जगह। सिर्फ दो कमरे। घर में अतिथियों
की भरमार। अखंड-पाठ करवा पाना कठिन होगा। घर में बाबा जी की बीड़ थी। गैलरी में
बने एक छोटे कमरे में रोज ‘प्रकाश’ किया जाता था। उन्होंने विचार कर निर्णय किया
कि गुरुद्वारे के भाई जी से सहज-पाठ करवा लिया जाए। उनकी इच्छा थी, पाठ घर पर ही
होना चाहिए।
शाम को गुरुद्वारे जाकर भाई जी से विनती की गई।
“भाई जी बोले, “बीबी, महँगाई बहुत है। घर जाकर पाठ करने का ‘मौख़’ ज्यादा
होगा।”
“कोई बात नहीं, जो भेंट बनती है, दी जाएगी।”
“बीबी, पंद्रह सौ पाठ के। ग्रंथी साहिब की चाय-पानी से सेवा।
दोनों समय वह प्रशादा(भोजन) भी छकेंगे।”
“ठीक है जी।”
“भोग के समय एक जोड़ा कपड़ों का भी बनवा देना। हाँ सच, जोड़े
के साथ पगड़ी ज़रूर हो। पगड़ी ही तो सिक्खी की शान है।”
“जो हुकुम।”
“आपको पता ही होगा, कपड़ों के साथ कछहरा-परना भी देना है।”
“जी।” कुछ न जानते हुए भी
उन्होंने हामी भर दी।
पहले दिन भाई जी ने दो घंटों में सौ अंक पाठ किया।
पाठ के बाद दूध व बादामों की फ़रमाइश हुई। दूसरे दिन तीन घंटों में दो सौ अंक और
तीसरे दिन तीन घंटों में तीन सौ अंक हो गए। भाई जी की स्पीड बढ़ती ही गई। अड़तालीस
घंटे अखंड चलने वाला पाठ, सहज रूप में मात्र छब्बीस घंटों में समाप्त हो गया।
एतराज करने पर भाई जी बोले, “मैं प्रतिदिन नोट करके ले जाता हूँ और गुरुद्वारे
में आपका पाठ ही करता रहता हूँ।”
“अब शोर मचाने से क्या फायदा?” पति ने समझाया।
“इस महँगाई में रब्ब भी महँगा हो गया है। यहाँ हर चीज महँगी
जरूर है, पर हर वक्त तैयार-बर-तैयार मिलती है। देखो आपको पाठ भी किया-कराया मिल
रहा है।”
“जो चीजें रैडीमेड खरीदी जाएँ वे महंगी तो होती ही हैं।”
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2 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार (12-062012) को चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
SAHI BAT....
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