कुलदीप माणूँके
शाम कौर पिछले सप्ताह से पी.जी.आई अस्पताल में दाखिल थी। उसके दोनों लड़के सरकारी विभागों में अधिकारी थे। दोनों बारी-बारी से आकर माँ का हाल-चाल पूछ रहे थे। बड़े लड़के ने छोटे से कहा, “बलदेव! मैं अब एक हफ्ता नहीं आ सकता। तेरे भतीजे के पेपर हैं। मेरे डर से वह चार अक्षर पढ़ लेगा।”
“वीर जी, मेरे दफ्तर में तो ऑडिट चल रहा है। मेरा यहाँ माँ के पास रह पाना कठिन है।” छोटे बलदेव ने कहा।
उनकी बहन किंदी पहले दिन से ही माँ के पास अस्पताल में थी। दोनों भाइयों की बात सुनकर वह बोली, “वीर जी! आप दोनों जाओ, मैं हूँ ना यहाँ। मैं सँभाल लूँगी माँ को।”
दोनों भाई वापसी की तैयारी करने लगे। मां रो रही थी। वह सोच रही थी, वह तब क्यों रोई थी, जब किंदी पैदा हुई थी?”
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2 comments:
dil chhoo gyi ye kahani.....thanx
एक सार्थक रचना।
www.yuvaam.blogspot.com
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