Monday, 7 November 2011

चोट


पूनम गुप्त (डॉ.)

नित्य की तरह उस दिन भी मनजीत दफ्तर से घर आ रही थी। अचानक मोड़ पर दूसरी ओर से आ रही कार से टकराकर वह स्कूटर समेत गिर पड़ी। चोट ज्यादा नहीं लगी थी। साहस जुटा वह उठी और धीरे-धीरे स्कूटर चला किसी तरह घर पहुँच गई। उसका पति महेंद्र भी दफ्तर से घर आ चुका था।
कुछ देर बाद मनजीत ने ऐक्सीडेंट की घटना महेंद्र को बतानी शुरू की। अभी वह अपनी बात पूरी कर ही रही थी कि उसकी बात बीच में ही काटते हुए महेंद्र बोला, तुमने अंधाधुंध चलाया होगा स्कूटर! और तुमने क्या करना था!
हमदर्दी के दो शब्दों की जगह पत्थर की तरह गिरे वे बोल सीधे मनजीत के दिल पर लगे। शरीर की अंदरूनी चोटों के साथ-साथ दिल पर लगी इस गहरी चोट का दर्द पहले से कहीं अधिक उसके चेहरे और आँखों से टपक रहा था।
                            -0-