Tuesday, 11 October 2011

जिंदा लोग


हरभजन सिंह (डॉ.)

सड़क पर ज्यों ही मैंने अपना स्कूटर दाहिनी ओर मोड़ा तो सामने से आ रहे साइकिल सवार के संतुलन बिगड़ जाने से वह गिर पड़ा। इतने में मैं मोड़ काट चुका था। मैंने पीछे मुड़कर देखा, वह उठ रहा था। मैंने देखा, उसका एक बाजु नहीं था। सोचा, उतर कर पता कर लूँ, पर न जाने किस जल्दी के कारण मैं रुक न सका।
रात को जब खाना खाने लगा तो रोटी गले से नीचे ही न उतरे। मन बार-बार कोसे कि तूने उतर कर उसकी मदद क्यों नहीं की, क्षमा क्यों नहीं माँगी। इन्हीं सोचों में रात गुज़र गई।
अगले दिन मैंने स्कूटर उठाया और उसी चौक में पहुँच गया। वहाँ एक रोहड़ी वाले से कहा कि कल जो व्यक्ति साइकिल से गिरा था, उसके बारे में बताए।
रेहड़ी वाले ने बताया कि वह तो एक बाँह वाला तेजू है। फैक्टरी में काम करता है और रोज शाम को वहाँ से गुज़रता है।
मैं शाम को वहाँ जाकर खड़ा हो गया। थोड़ी देर बाद मैंने देखा, तेजू एक हाथ से धीरे-धीरे साइकिल चलाता हुआ आ रहा था। पास आने पर मैंने उसे रोक लिया और कहा, भाई साहब, मैं वही आदमी हूँ जिसकी वजह से कल आप यहाँ गिर पड़े थे। मैं आपसे माफी…।इतना कह मैंने उसे बाँहों में ले लिया।
वह हँस पड़ा, भाई सा'ब! हम तो रोज ही कई ठोकरें खाते हैं, यह कौनसी बड़ी बात हो गई। मुझे तो कल वाली बात बिल्कुल ही भूल गई थी।
इतना कह उसने एक हाथ से मेरी पीठ थपथपाई। उसकी थपथपाहट में मेरी दोनों बाँहों से कहीं अधिक ताकत थी। मुझे लगा, जैसे उसकी दृढ़ता के सामने मेरी दोनों बाँहें ढ़ीली हैं।
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1 comment:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच-666,चर्चाकार-दिलबाग विर्क