Sunday 2 October 2011

मासूम


दलीप सिंह वासन

साइकिल के पीछे रोटी वाला डिब्बा फँसाए, मैं काम पर जा रहा था। आगे जाकर दाहिनी तरफ से एक छोटी सड़क आकर मिलती थी। मैं विचारों में डूबा, धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। अचानक दूसरी सड़क से साइकिल पर आ रहा एक बच्चा मुझ से आ टकराया। मैं धड़ाम से नीचे गिर पड़ा। मेरा रोटी वाला डिब्बा भी गिर गया। रोटियां और सब्जी डिब्बे से बाहर हो गईं। डिब्बे घूमते हुए नाली में जा गिरे। मेरी पगड़ी भी उतर गई।
मैंने सबसे पहले अपनी पगड़ी उठाई और उसे सिर पर टिकाने का प्रयास किया। फिर मैंने साइकिल उठाकर खड़ा किया। इतने में लोग मेरे पास आकर हालचाल पूछने लगे। कुछेक की नज़र उस बच्चे पर भी पड़ी। कुछ तो उसे पकड़ कर मेरे पास लाने के लिए उतानले थे। वे बच्चे को सज़ा देना चाहते थे।
इतनी देर में बच्चा नाली में से डिब्बे के भाग निकाल, पानी से साफ कर, डिब्बा बंद कर ले आया था। वह बोला, अंकल, आपको चोट तो नहीं लगी? मैंने कल ही साइकिल चलाना सीखा है। मुझे अभी ठीक से ब्रेक लगानी नहीं आती।
उसकी मासूमियत देखकर सभी लोग उसकी ओर हैरानी से देख रहे थे। मैं आगे बढ़ अपने पाँवों पर बैठ गया। उसे बाँहों से पकड़ कर मैंने कहा, नहीं बेटे, मुझे चोट नहीं लगी। मैं पूरी तरह ठीक हूँ।फिर मैंने उसकी बाँहों तथा टाँगों पर हाथ फेरते हुए कहा, तू भी चोट लगने से बच गया है। तेरा बहुत-बहुत धन्यवाद! तू भागा नहीं। तू तो मेरा डिब्बा भी ढूँढ लिया। यह भीड़ तो बस जबानी-कलामी ही हमदर्दी प्रकट कर रही थी। और मैंने उसका माथा चूम लिया।
धन्यवाद अंकल!कह वह अपनी साइकिल पर सवार हो चला गया।
                          -0-

No comments: