सुखवंत सिंह मरवाहा
वृक्ष की छाँव में लेट कर खरबूजे बेच रहे बुजुर्ग को एक राहगीर ने पूछा, “खरबूजे क्या भाव हैं?”
बुजुर्ग ने लेटे-लेटे ही उत्तर दिया, “पचास पैसे का एक है, कोई ले लो।”
राहगीर बहुत हैरान हुआ। उसने बुजुर्ग से कहा, “आपको एक सलाह दूँ…आप खरबूजे बैठ कर बेचा करो।”
बुजुर्ग ने पूछा, “बैठकर खरबूजे बेचने से क्या होगा?”
राहगीर बोला, “बैठकर ध्यान से खरबूजे बेचोगे तो इनमें से कुछ एक रुपये के और कुछ तो इससे भी अधिक में बिक सकते हैं। इससे आप अधिक पैसे कमा सकते हो और यहाँ एक पक्की दुकान बना सकते हो।”
“बात तो आपकी ठीक है, पर दुकान में मैं क्या करूँगा?”
“दुकान में बैठकर आप आराम से खरबूजे बेच सकोगे।”
बुजुर्ग कुछ देर राहगीर के चेहरे को देखता रहा और फिर बोला, “फिर आराम कहाँ रहेगा! आराम से तो मैं अब खरबूजे बेच रहा हूँ।”
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