Thursday, 2 December 2010

रिश्तों का अंतर

हरभजन खेमकरनी

अपने एक संबंधी के विवाह समारोह में शामिल होने के लिए वह गाँव के बस-स्टैंड पर बस की प्रतीक्षा कर रहा था। उस के साथ उसकी नवविवाहित पत्नी, जवान साली तथा अविवाहित जवान बहन थीं। बस जैसे ही आकर उनके पास रुकी, वह सीटें रोकने के लिए जल्दी से बस में चढ़ गया। पिछले दरवाजे के पास ही तीन सवारियों वाली खाली सीट पर वह बैठ गया। उस की पत्नी उस के दाहिनी ओर बैठ गई और साली बाईं तरफ । उसकी बहन उनके पास आकर खड़ी हो गई। उसने बस में नज़र दौड़ाई। अगले दरवाजे के पास दो वाली सीट पर अकेला नौजवान बैठा था। खाली सीट की ओर इशारा करते हुए वह अपनी बहन से बोला, बीरो, तू उस सीट पर जाकर बैठ जा।

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3 comments:

संजय कुमार चौरसिया said...

antar to hai

निर्मला कपिला said...

ाब साली और बहन मे अन्तर तो है लेकिन कितनी ओछी मानसिकता है कि क्षणिक सुख के लिये बहन को किसी दूसरे के साथ बिठाने मे भी अपत्ति नही ,ागर यही बहन अपनी मर्जी से किसी युवक के साथ बैठ जाती तो यही भाई मरने मारने पर उतारू हो जाता। अच्छी लगी लघु कथा। धन्यवाद।

RAJNISH PARIHAR said...

ye dohri soch kab badlegi...?