Wednesday, 22 December 2010

वर्दी


                                                                                            
 हरभजन खेमकरनी

हवेली के सामने बैठा सरपंच अपने समर्थकों के साथ मामले निपटाने संबंधी विचार-विमर्श कर रहा था। उनके समीप ही छुट्टी पर आया सरपंच का बेटा फौजी-वर्दी कसे बैठा था। वह अपनी मित्र-मंडली को फौज के किस्से चटखारे ले-ले कर सुना रहा था।
तभी गाँव लौटा सूबेदार निशान सिंह अपनी दलित बस्ती में जाने के लिए हवेली के सामने से गुजरा। उसे देखते ही सरपंच के बेटे ने खड़े होकर जोरदार सैल्यूट मारा। सैल्यूट का उत्तर देकर सूबेदार जब थोड़ा आगे बढ़ गया तो पीछे से किसी ने शब्दबाण छोड़े–
आज़ादी तो इन्हें मिली है। देखा सूबेदार का रौब! सरपंच का बेटा भी सैलूट मारता है।
भाऊ जी, आदमी को कौन पूछता है! यह तो कंधों पर लगे फीतों की इज्जत है।
कोई बात नहीं, सूबेदार को संदेश भेज देते हैं कि आगे से वर्दी पहन कर गाँव में न आया करे। सरपंच ने शून्य में घूरते हुए कहा।
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