निरंजन
बोहा
बुढ़ापा-पेंशन के
फार्म तसदीक करवाने के लिए वह अपने गाँव की महिला सरपंच के घर गया। वह भैंस की धार
निकाल रही थी।
“जी, इन फार्मों पर आपके हस्ताक्षर करवाने हैं।” मैंने विनती की।
“सरदार जी मंडी गए हैं, शाम तक आएँगे…फार्म-फूर्म का काम वे
ही करते हैं। शाम को आ जाना।” महिला सरपंच ने बिना फार्म देखे कह दिया।
औरत को सत्ता में भागीदार बनाने के लिए बने कानून की
सार्थकता संबंधी विचार करता, मैं निराश हो घर लौट आया।
शाम को सरपंच का पति करतार सिंह घर ही मिल गया। उसने मेरे
फार्मों पर झट से मुहर लगा दी। फिर जूठे बर्तन माँज रही अपनी पत्नी को आदेशात्मक
स्वर में कहा, “अरी, यहाँ हस्ताक्षर कर
दे, अपने ही आदमी हैं।”
मुझे लगा जैसे करतार सिंह ने मेरे फार्म पर एक की जगह दो
मुहरें लगा दी हों।
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