गुरदीप
सिंह पुरी
“बेटा, सुबह का कुछ नहीं
खाया। भगवान के नाम पर रोटी दे-दे। भगवान तुझे लंबी उम्र दे। तेरी कुल ऊँची हो।
तेरा आँगन खुशियों से भरा रहे।” बूढ़ी भिखारिन ने दफ्तर के लॉन में बैठे बाबू को रोटी वाला
डिब्बा खोलते देख मिन्नत की।
बाबू ने डिब्बा खोला तो उसमें सदा की तरह तीन रोटियाँ ही
थीं। उनसे बाबू का पेट ही मुश्किल से भरता था।
बाबू ने थोड़ी सी सब्जी रखकर दो रोटियाँ बूढ़ी भिखारिन की
ओर बढ़ा दीं।
बूढ़ी के थिरकते होठों से बस यही निकला, “बेटा, रोटियां तो तीन ही
हैं। तुम खा लो, मेरा क्या है…मैं तो कहीं और से माँग लूँगी। तुम भूखे रह गए तो…।”
बूढ़िया लाठी टेकते आगे बढ़ गई। बाबू बहुत देर तक अपने आँसू
रोकने का प्रयास करता रहा।
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