Sunday, 7 July 2013

आग



                       
बूटा राम

बापू जी! मैं आपको कह कर तो गया था कि दोपहर से पहले दुकान बढ़ाकर चले जाना। यह सारा कारनामा आपके जिद्दी स्वाभाव और बात न मानने के कारण हुआ है।तीर्थ ने अपने पिता मदन लाल को दुकान के बाहर हुए नुकसान का जायज़ा लेने के बाद कहा।
बेटे! मुझे तो पता ही नहीं चला कि कब हजूम आया और कब एक-एक करके दुकान की चीजें तोड़नी शुरू कर दीं…हरामियों ने मेरा स्कूटर भी जला दिया।मदन लाल ने अपना दुखड़ा रोना शुरू कर दिया।
मैं मानता हूँ…मैं मानता हूँ कि आपको पता नहीं चला, पर ये नौकर कहाँ मर गए थे?
जब हजूम दुकान के आगे आकर रुका, वे सभी तो उसी वक्त भाग गए…मैं अकेला किस-किस को रोकता कि यह काम मत करो। पर बेटे! अगर दुकान लुटने से बचानी थी और तुम्हें इस हलचल का पहले से पता था, तो तू दुकान पर खुद ठहरता या बढ़ाकर ही जाता।मदन लाल ने भी अपनी दलील दी।
मैं कैसे ठहरता…बजाज वालों की दुकान भी तो जलानी थीतीर्थ के मुँह से सहज ही ये शब्द निकल गए।
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