Monday, 1 July 2013

ब्लैंक काल



हरमनजीत

टैलीफोन की घंटी बजती है।
हैलो…हैलो…हैलो…?
पिछले बीस मिन्टों में इसी तरह चार बार ब्लैंक-काल आई हैं। हर बार वर्मा साहब परेशान होकर फोन रख देते हैं।
पता नहीं कौन है? यूँ ही परेशान किए जा रहा है, लोगों के पास पैसा फालतू आया लगता है। लोगों ने अपने बच्चे बिगाड़ रखे हैं…।वर्मा सहब गुस्से में लाल-पीले हुए श्रीमती वर्मा को कहते हैं।
कुमार के घर यूँ ही कालें आती थीं। अगर कोई मर्द उठाता तो काट देते, औरत उठाती तो उल्टी-सीधी बातें करने लग जाते। उसने कालर-आई.डी लगवा ली अब।श्रीमती वर्मा ने चाय का कप पकड़ाते हुए कहा।
लड़के ही नहीं, लड़कियाँ भी बिगड़ी हैं आजकल, जो टाइम पास करने को बस मर्दों से ही बातें करती हैं…आजकल के लड़के-लड़कियों के तो आग लगी हुई है।वर्मा साहब के माथे पर बल पड़ जाते हैं।
क्या हुआ, मम्मी?वर्मा साहब के जवान बच्चे समीर व अंजू बैठक में दाखिल होते हुए पूछते हैं। श्रीमती वर्मा बात बताती है।
‘शायद शमां का होगा। कल ई.मेल किया तो लिखा था कि सुबह नौ बजे फोन करना। पर अभी तो साढ़े-सात ही बजे हैं। अबके फोन आया तो मैं उठाऊँगा।’ समीर सोचता है।
‘शायद विजय का होगा! दो दिन से न तो मैं उसे मिली हूँ और नही कोई फोन किया। यह मुझे ज़रूर मरवाएगा। इसे कितनी बार कहा है कि मैं खुद ही फोन कर लूँगी, पर यह कभी नहीं समझता।’ अंजू के मन में डर समा रहा था।
वर्मा साहब अखबार में डूबे हैं। श्रीमती जी एक पत्रिका में मस्त हैं। समीर व अंजू चाय की चुस्कियां ले रहे हैं।
अचानक फिर से फोन की घंटी बजती है।
समीर एकदम फोन उठाने को आगे बढ़ता है, पर उठाने से पहले ही घंटी बंद हो जाती है।
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