कर्मजीत
नडाला (डॉ.)
मंडी में गेहूँ
की ढ़ेरियाँ दूर-दूर तक लगी थीं। पसीने से लथपथ प्रवासी मज़दूर उनपर काम कर रहे
थे।
उसी समय एक ऊँची चीख सुनाई दी और मंडी में सन्नाटा छा गया।
गेहूँ साफ करने वाली मशीन से एक मज़दूर को बिजली का करंट लग गया था।
“देखो सेठ, रामू करंट से मर गया…हम कितने दिनों से कह रहे थे
कि बिजली की तारों को ठीक करवा दो…पर आपने हमारी एक न सुनी।” जल्दी से लाश की ओर आ
रहे सेठ को एक मज़दूर ने कहा।
“ओह! वह मर गया…बहुत बुरा हुआ…।” सेठ एकदम घबरा गया।
कहीं ये सारे ‘भइये’(प्रवासी मज़दूर) कोई हंगामा ही न खड़ा
कर दें। पुलिस-केस न बन जाए। साथ में चालीस-पचास हज़ार रुपये देने पड़ेंगे। सेठ
रुआँसी-सी सूरत बना लाश के पैरों के पास बैठ बोला, “…भई सुनो…रामू से बहुत
बुरा हुआ…तुम रोवो न, हौंसला करो…यह तो भगवान का जो लिखा था, वह हो गया। होनी को
कौन टाल सकता है…किसी के बस की बात नहीं…समझदार बनो। इस मेहनती आदमी की लाश को यूँ
धूल-मिट्टी में न रुलने दो,। चलो इसे उठाओ, जल्दी से इसका दाह-संस्कार कर दें।”
थोड़ी देर में ही एक जिंदा व्यक्ति लाश बना और फिर राख में
बदल गया।
वापस आकर सेठ अपने ठंडे केबिन में घुस गया और सभी मज़दूर
बोरियों के पास इकट्ठे होकर बैठ गए।
कुछ देर बाद रोने की आवाज़ें तेज़ हुई तो सेठ केबिन से बाहर
आ गया।
“ओए! तुमने ये क्या रोना-धोना मचा रखा है, काम क्यों नहीं
करते?”
“दिल नहीं मान रहा।”
“जिस बाप को रो रहे हो, इस तरह रोने से क्या वह वापस आ
जाएगा? चलो काम करो। ऊपर आसमान में बादल छा रहे हैं, मैं गेहूँ के मालिकों को क्या
जवाब दूँगा…सालो, मेरा लाखों का नुकसान करवाना है। कान खोल कर सुन लो…अगर मेरा
नुकसान हुआ तो तुम्हें एक पैसा नहीं
मिलेगा…।” गुस्से में बोलता हुआ सेठ
चला गया।
और ‘भइये’ एक-दूसरे के मुँह की ओर देखते बिखरने लगे। सुबकते
और धूल-सने हाथों से आँसू पोंछते, काम पर जुट गए। उन का रुदन मशीनों के शोर में
गुम हो गया।
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