Sunday, 26 May 2013

उलाहना



प्रीत नीतपुर

 बकरियों वाले बाज की बेटी ने कुएं में छलाँग लगा दी…।
यह क्या हादसा हो गया?अनुभवी बुजुर्गों के माथे ठनके।
पटोले-सी थी, गाँव ही सूना कर गई।  नौजवानों के पाँवों तले तो जैसे आग लग गई।
छलाँग लगाई क्यों?मुखबरों, चुगलखोरों और बुरी नीयत वाले लोगों ने सुराग ढूँढ़ने शुरू कर दिए।
हाय राम! ये काम! मरजानी ने यह क्या किया?
एक-दूसरी से ‘अंदर की बात’ सूँघने की कोशिश में औरतें मुँह जोड़-जोड़ कर बातें करती। जंगल की आग की तरह, पल भर में ही बात सारे गाँव में फैल गई। सच में एक बार तो ‘थू-थू’ हो गई।

लड़की तो शरीफ थी…।
अरी शरीफ होती तो यूँ करती…!
बूढ़ी अत्तरी बोली, तुम्हें अंदरली बात का नहीं पता…
अंदरली बात जानने के लिए सभी ने कान खड़े कर लिए। फिर बूढ़ी अत्तरी ने बड़े ही भेद भरे अंदाज़ में बड़े ही धीमे-से जो कुछ कहा, उसे सुनकर सब के मुँह हैरानी से खुले के खुले रह गए।
हैं!!
जैसे बम फट गया होता है।
अरी! उसकी उम्र ही अभी क्या थी…और उलाहना कितना बड़ा ले लिया जग से।
और फिर कितनी ही देर तक वे खुसर-पुसर करती रहीं।
                        -0-

No comments: