निरंजन
बोहा
सुदामा सिंह ने
तो ऐसा सपने में भी नहीं सोचा था कि उसके बचपन के साथी मंत्री कृष्ण देव सिंह के
दफ्तर में उसका इतना अच्छा स्वागत होगा। यद्यपि वह अपने सभी मित्रों को यह बात
बहुत गर्व से बताता रहा है कि राज्य के शिक्षा मंत्री पाँचवी कक्षा तक उसके साथ
पढ़ते रहे हैं। लेकिन उसके मन में यह भय
अवश्य था कि पता नहीं इतनी ऊँची पदवी पर बैठा कृष्ण अब अपने गरीब साथी को पहचानेगा
भी या नहीं।
उसकी पत्नी कई दिनों से उस पर ज़ोर दे रही थी कि वह अपने बेरोजगार
बेटे की नौकरी की सिफारिश के लिए मंत्री जी के पास जाए। बहुत दिनों की कशमकश के
बाद वह झिझकते हुए मंत्री जी के दफ्तर के आगे पहुँच गया। उसकी हैरानी का कोई अंत
नहीं रहा, जब उसका नाम सुनकर मंत्री जी स्वयं उठ कर उसके स्वागत के लिए आए।
उन्होंने एक पल के लिए उसके घिसे-पुराने वस्त्रों की ओर देखा और फिर उसे जफ्फी में
ले लिया। खुशी से उसकी आँखों में आँसू आ गए। उनके मिलन को यादगारी बनाने के लिए
मंत्री जी ने लोक-संपर्क विभाग से फोटोग्राफर मंगवा कई तस्वीरें भी खिंचवा लीं।
सुदामा सिंह के चले जाने के बाद, मंत्री जी उसके बेटे की
नौकरी के लिए दिए आवेदन को देख कर मुस्कराए। फिर उसे फाड़ कर रद्दी की टोकरी में
फेंक दिया।
अगले दिन राज्य के सभी समाचार-पत्रों के मुख्य-पृष्ठ पर
मंत्री जी की फोटो छपी थी, जिसमें वे सुदामा को जफ्फी में लिए हुए थे। फोटो के
नीचे लिखा था कि इतनी ऊँची पदवी पर पहुँच कर भी वे खाली बोतलें और रद्दी खरीदने
वाले अपने गरीब साथी को नहीं भूले।
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