दर्शन
धंजल
रोटी खाते ही
स्वर्ण की माँ की तबीयत एकदम बिगड़ गई। डॉक्टरों ने उसे बारीकी से चैक किया। कई
टैस्ट हुए। उन्होंने स्वर्ण को स्पष्ट कह दिया कि दो दिन के भीतर आपरेशन करवा ले।
साथ ही यह भी बता दिया कि पच्चीस-तीस हज़ार रुपये के खर्च का प्रबंध कर ले।
इतनी जल्दी, इतनी बड़ी रकम? वह सोच में पड़ गया। अस्पताल के पास वाले पी.सी.ओ. से ही
उसने अपने भाई-बहनों को फोन कर दिए। उन्हें सब कुछ साफ-साफ बता दिया।
घर पहुँचते ही उसने पनी पत्नी की ओर सवालिया नज़रों से
देखा।
“…इस बार भी वही बात…अच्छी चीज नहीं बताई डॉक्टर ने…।”
“फिर क्या होगा?”
“होना क्या है, आज या कल समय निकालो…दस-पंद्रह हज़ार रुपये
जेब में डालो…चलो अस्पताल…और फिर अगले साल जो होगा, देखा जाएगा।” पत्नी ने कहा।
स्वर्ण ने ठंडी आह भरते हुए कहा, “इधर माँ के लिए भी डॉक्टर
ने कहा है कि चौबीस घंटे में…” और आगे वह कुछ न कह सका, जैसे पैंतीस-चालीस हज़ार के वजन के
नीचे दब गया हो।
तभी पास पड़े टैलीफोन की घंटी बजने लगी।
“हैलो…हैलो…बहन जी, सति श्री 'काल…और क्या हाल है?”
“वीर जी! तुम्हारे जीजा जी कल सुबह पंद्रह हज़ार रुपये लेकर
पहुँच रहे हैं…छोटी को भी मैंने कह दिया है। वह भी सुबह बीस हज़ार रुपये लेकर
पहुँच जाएगी। तुम बीबी को दाखिल करवा दो ताकि डॉक्टर अपना काम शुरू कर दें…पैसों
की कोई चिंता न करना।”
“किस का फोन था? बड़ी ‘हाँ-हूँ,
अच्छा-अच्छा’ करते रहे हो।”
“बाकी बातें तो बाद में करेंगे, पर पहले एक बात ध्यान से सुन
ले…हमने डॉक्टर के पास नहीं जाना। प्रत्येक जीव अपनी किस्मत साथ लेकर आता है।”
पत्नी उसकी ओर हैरानी से देख रही थी।
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2 comments:
आपकी प्रविष्टि कल के चर्चा मंच पर है
धन्यवाद
बहुत बढ़िया..
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