Monday 4 March 2013

दीवारें



श्याम सुन्दर दीप्ति (डॉ.)


ससरी ’काल बापू जी! और क्या हाल है?कश्मीरे ने घर के दरवाजे के सामने गली में चारपाई पर बैठे बापू को कहा और साथ ही पूछा, जस्सी घर पर ही है?
हाँ बेटा! और तू सुना, राजी हैं सब?
हाँ बापू जी! मेहर है वाहेगुरू की! आपको शहर की गली में पेड़ के नीचे बैठा देख, गाँव की याद आ गई। शहरी तो बस घरों में ही घुसे रहते हैं…अच्छा बापू, मैं आता हूँ जस्सी से मिलके।कहकर वह अंदर चला गया।
जस्सी ने कश्मीरे के आने की आवाज़ सुन ली थी। वह कमरे से बाहर आ गया और कश्मीरे को गले मिलता अंदर ले गया।
अपनी बातें खत्म कर कश्मीरे ने पूछा, और बापू जी कब आए?
तबीयत कुछ खराब थी, मैं ले आया कि चलो शहर किसी अच्छे डॉक्टर को दिखा देंगे। पर इन बुजुर्गों का हिसाब अलग ही होता है। कार में बिठाकर ले जा सकते हो, टैस्ट करवा सकते हो, पर दवाई-बूटी इन्होंने अपनी मर्जी से ही लेनी होती है।जस्सी ने अपनी बात बताई।
चलो! तूने दिखा दिया न। अपना फर्ज तो यही है बस।
वह तो ठीक है। अब तूने देख ही लिया न, घर के अंदर कमरों में ए.सी. लगे हैं, कूलर-पंखे सब हैं। पर नहीं, बाहर ही बैठना है, वहीं लेटना है। बुरा लगता है न। पर समझते ही नहीं।
तूने समझाया?  कश्मीरे ने बात का रुख बदलते हुए कहा।
बहुत माथा-पच्ची की।
चल। सभी को पता है, इन बुजुर्गों की आदतों का।कहकर वह उठ खड़ा हुआ।
वह बाहर आ एक मिनट बापू के पास बैठ गया और उसी अंदाज़ में बोला, बापू, तूने तो शहर का दृश्य ही बदल दिया।
हाँ बेटा! घर में पंखे-पुंखे सब हैं। पर कुदरत का कोई मुकाबला नहीं। एक बात और बेटा, आता-जाता व्यक्ति रुक जाता है। दो बातें सुन जाता है, दो बातें सुना जाता है। अंदर तो बेटा दीवारों को ही देखते रहते हैं।
यह तो ठीक है बापू! जस्सी कह रहा था, सभी कमरों में टी.वी. लगा है। वहाँ भी दिल बहल जाता है।कश्मीरे ने अपनी राय रखी।
ले ये भी सुन ले। मैं तो उसे दीवार ही कहता हूँ…अब पूछ क्यों?…बेटा, कोई उसके साथ अपने दिल की बात तो नहीं बाँट सकता न।
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