अनवंत
कौर
बहू के हाथ से
कांच के बर्तनों वाली ट्रे गिर गई। दोष उसका नहीं था। सफेद मार्बल के फर्श पर गिरा
पानी नज़र नहीं आ रहा था। पाँव फिसल गया। स्वयं तो किसी तरह सँभल गई, पर ट्रे गिर
गई। कांच के दो गिलास व दो प्लेटें टूट गईं।
खड़का सुन, हर समय घुटनों के दर्द का रोना रोने वाली उसकी
सास भागती हुई आई। कांच के टुकड़ों जितनी ही गालियों के टुकड़े, उसकी जबान से
गोलियों की तरह बरसने लगे– “अरी ओ घर की दुश्मन, तेरा
सर्वनाश हो! तू इस घर का बेड़ा गर्क करके रहेगी। भूखों की औलाद, पीछे तो कुछ देखा
नहीं। अब यह भरा-पूरा घर तुझसे बर्दाश्त नहीं होता। यूं कर, अलमारी में जो क्राकरी
पड़ी है, वह भी ले आ और सारी एक बार में ही तोड़ दे। जब तक तुझे एक भी प्लेट साबुत
नज़र आएगी, तुझसे बर्दाश्त नहीं होगा।”
पत्नी की कठोर आवाज़ व गालियाँ सुनकर ससुर भी अपने कमरे से
बाहर निकल आया। कुछ पूछने की ज़रूरत नहीं थी। कांच के टुकड़े व बहू की आँखों के
आँसू और पत्नी की गालियाँ, सब कुछ बयान कर रहे थे।
वह बोले, “इसका क्या कसूर है? पाँव तो किसी का
भी फिसल सकता है। गिलास ही हैं और जाएँगे।”
“आपने तो जबान हिला दी…और आ जाएँगे! महीने में एक बार तनख़ाह
लाकर देते हो दोनों बाप-बेटे। मुझे ही पता है कि इस महँगाई के जमाने में घर का
खर्च किस तरह चलाती हूँ। मुझे तो तीस दिन एक-एक पाई सोच कर खर्च करनी पड़ती है।”
“अच्छा! इस तरफ तो हमने कभी ध्यान ही नहीं दिया। आज से
तुम्हें यह तकलीफ उठाने की ज़रूरत नहीं। पढ़ी-लिखी बहू आई है, आप ही बजट बनाकर घर
चला लेगी। आगे से तनख़ाह इसके हाथों में दिया करेंगे।”
“क्…क्या…?”
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4 comments:
बहुत बढ़िया ! ससुर जी ने खूब नहले पर दहला मारा ! ऐसी सकारात्मक सोच वाले लोग घर में हों बहुओं का जीवन भी संवर जाए ! बहुत बढ़िया कहानी !
खूब नहले पर दहला मारा ससुर जी ने ! हर परिवार में ऐसे ही उदारमना बुज़ुर्ग हों तो बहुओं की ज़िंदगी में भी खुशियों का उजाला फ़ैल जाए ! बहुत सुन्दर कथा ! मैंने कल भी कमेन्ट किया था इस कहानी पर जो दिखाई नहीं दे रहा !
आप की ये खूबसूरत रचना शुकरवार यानी 22 फरवरी की नई पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है...
आप भी इस हलचल में आकर इस की शोभा पढ़ाएं।
भूलना मत
htp://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com
इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है।
सूचनार्थ।
बढ़िया समाधान!
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