Monday, 10 September 2012

माँ


जोगिंदर भाटिया

वह नया-नया स्कूल में अध्यापक लगा था। बहुत ही साधारण व्यक्ति था और बच्चों को मन लगाकर पढ़ाता था। उसके साथी अध्यापक उसे कहते, तेरा नशा जल्दी ही उतर जाएगा। तू हमारी ओर देख, मर्जी से आते–जाते हैं, मजे से छुट्टियाँ मनाते है। पढ़ाएँ या न, कोई नहीं पूछता। बस प्रिंसीपल मैडम की जी-हुज़ूरी कर लेते हैं।
भाइयो, यही तो मुझ से नहीं होता। मुझे तो मेहनत व उसूल विरासत में मिले हैं। मैं इन्हें कैसे त्याग दूँ। एक ऊपर वाले के सिवा मैं किसी से नहीं डरता।
अध्यापकों के एक ग्रुप ने उसकी शिकायत प्रिंसीपल से कर दी‘नया अध्यापक कहता है कि वह मैडम से नहीं डरता’
बस फिर क्या था, मैडम एकदम भड़क गई। उसने अध्यापक को अपने पास बुला लिया।
सुना है तुम पीठ के पीछे मेरी बदनामी करते हो। अगर यह बात साबित हो गई तो मैं तुम्हारी गुप्त रिपोर्ट कराब कर दूँगी। तुम तो अभी पक्के भी नहीं हुए।
मैडम, आप मेरी गुप्त रिपोर्ट खराब कर ही नहीं सकतीं।उसने साहस-भरा जवाब दिया।
वह कैसे?
स्कूल के मुखी माँ-बाप की तरह होते हैं। इस तरह आप मेरे लिए माँ के समान हैं। माँ कभी भी अपने बेटे का बुरा नहीं सोच सकती।
उसकी बात सुन प्रिंसीपल अवाक् रह गई।
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